पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का देहांत

पुणे समाचार ऑनलाइन

सभी राजनीतिक नेताओं ने जताया शोक

DD न्यूज़ के हवाले से ऐसी ख़बर आयी है,पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का दिल्ली स्थित एम्स में देहांत हो गया वे 93 वर्ष के थे। मंगलवार को उनकी तबीयत ज्यादा बिगड़ गई जिस कारण उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार की शाम एम्स पहुंचकर करीब 45 मिनट से ज्यादा समय तक रूककर पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के सेहत से जुड़ी जानकारी ली थी।

बता दें कि 93 वर्षीय अटल बिहारी वाजपेयी डिमेंशिया नाम की गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे और 2009 से ही व्हीलचेयर पर थे। बीते दो महीनों से वेयूटीआई इंफेक्शन, लोवर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन और किडनी संबंधी बीमारियों के कारण एम्स में भर्ती थे। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, संघ प्रमुख मोहन भागवत समेत कई हस्तियों ने एम्स जाकर वाजपेयी की सेहत का हाल जाना था।

कुशल राजनीतिज्ञ थे पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी की पहचान एक कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, भाषाविद, कवि, पत्रकार व लेखक के रूप में है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा में पले-बढ़े वे राजनीति में उदारवाद और समता एवं समानता के समर्थक माने जाते थे।

ग्वालियर में हुआ था जन्म 
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसम्बर 1924 को हुआ था. उनके पिता कृष्ण बिहारी बाजपेयी शिक्षक थे। उनकी माता कृष्णा थीं। वैसे मूलतौर पर उनका संबंध उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के बटेश्वर गांव से है लेकिन पिता मध्य प्रदेश में शिक्षक थे। इसलिए उनका जन्म वहीं हुआ। हालांकि उनका लगाव उत्तर प्रदेश की राजनीतिक से सबसे अधिक रहा। लखनऊ से वो सांसद रहे थे।

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1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा
उन्होंने सबसे पहले 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। बाद में 1957 में गोंडा की बलरामपुर सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रूप में जीत कर लोकसभा पहुंचे। उन्हें मथुरा और लखनऊ से भी लड़ाया गया लेकिन हार गए। अटल जी ने बीस सालों तक जनसंघ के संसदीय दल के नेता के रूप में काम किया।

विदेश मंत्री भी रह चुके थे
इंदिरा जी के खिलाफ जब विपक्ष एक हुआ और बाद में जब देश में मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो अटल को विदेशमंत्री बनाया गया। उन्होंने राजनीतिक कुशलता की छाप छोड़ी। विदेश नीति को बुलंदियों पर पहुंचाया। बाद में 1980 में जनता पार्टी से नाराज होकर पार्टी का दामन छोड़ दिया। इसके बाद बनी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में वह एक थे। उसी साल उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी. 1986 तक उन्होंने भाजपा अध्यक्ष पद संभाला। उन्होंने इंदिरा गांधी के कुछ कार्यों की तब सराहना की थी, जब संघ उनकी विचारधारा का विरोध कर रहा था।

विदेश नीति पर साफ था नजरिया 
अटल बिहारी वाजपेयी का विदेश नीति पर नजरिया साफ था। वह आर्थिक उदारीकरण एवं विदेशी मदद के विरोधी नहीं रहे हैं लेकिन वह इमदाद देशहित के खिलाफ हो, ऐसी नीति को बढ़ावा देने के वह हिमायती नहीं रहे। उन्हें विदेश नीति पर देश की अस्मिता से कोई समझौता स्वीकार नहीं था।

1998 में परमाणु परीक्षण से दुनिया को हिला दिया था
अटल बिहारी वाजपेयी ने लालबहादुर शास्त्री जी की तरफ से दिए गए नारे जय जवान जय किसान में अलग से जय विज्ञान भी जोड़ा। देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता गवारा नहीं था। वैश्विक चुनौतियों के बाद भी राजस्थान के पोखरण में 1998 में परमाणु परीक्षण किया। इस परीक्षण के बाद अमेरिका समेत कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया। कारगिल युद्ध की भयावहता का भी डटकर मुकाबला किया और पाकिस्तान को धूल चटायी थी।

कोंकण रेल सेवा की आधारशिला रखी 
उन्होंने दक्षिण भारत के सालों पुराने कावेरी जल विवाद का हल निकालने का प्रयास किया। स्वर्णिम चतुर्भुज योजना से देश को राजमार्ग से जोड़ने के लिए कॉरिडोर बनाया। मुख्य मार्ग से गांवों को जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क योजना बेहतर विकास का विकल्प लेकर सामने आई। कोंकण रेल सेवा की आधारशिला उन्हीं के काल में रखी गई थी।

यह कविताएं रही खासी चर्चाओं में

कविताओं को लेकर उन्होंने कहा था कि ‘मेरी कविता जंग का एलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है।’ उनकी कविताओं का संकलन ‘मेरी इक्यावन कविताएं’ खूब चर्चित रहा जिसमें, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा..खासी चर्चाओं में रही।

सिर्फ एक वोट से गिर गई थी सरकार 
राजनीति में संख्या बल का आंकड़ा सर्वोपरि होने से 1996 में उनकी सरकार सिर्फ एक मत से गिर गई थी। उन्हें प्रधानमंत्री का पद त्यागना पड़ा था। यह सरकार सिर्फ तेरह दिन तक रही थी। बाद में उन्होंने प्रतिपक्ष की भूमिका निभायी। इसके बाद हुए चुनाव में वो दोबारा प्रधानमंत्री बने।
इसलिए लिया था आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय
राजनीतिक सेवा का व्रत लेने के कारण वो आजीवन अविवाहित रहे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए अविवाहित रहने का निर्णय लिया था। उन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता से भाजपा को देश में शीर्ष राजनीतिक सम्मान दिलाया। दो दर्जन से अधिक राजनीतिक दलों को मिलाकर उन्होंने राजग बनाया, जिसकी सरकार में 80 से अधिक मंत्री थे, जिसे जम्बो मंत्रिमंडल भी कहा गया। इस सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

हिंदी में भाषण देने वाले पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे
वे एक कवि के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे। लेकिन, शुरुआत पत्रकारिता से हुई। पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी। उन्होंने संघ के मुखपत्र पांचजन्य, राष्ट्रधर्म और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादन किया। 1957 में देश की संसद में जनसंघ के सिर्फ चार सदस्य थे, जिसमें एक अटल बिहारी वाजपेयी थे। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण देने वाले वो पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे। हिन्दी को सम्मानित करने का काम विदेश की धरती पर उन्होंने किया।
भारत रत्न से सम्मानित
जनसंघ के संस्थापकों में एक अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक मूल्यों की पहचान बाद में हुई। उन्हें भाजपा सरकार में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।