नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद देना यानी हारे हुए पहलवान को विजय पदक देने जैसा 

मुंबई, 12 नवंबर : बिहार में फिर से नीतीश कुमार आ रहे है।  लेकिन लोगों की ऐसी इच्छा है क्या ? बिहार में भाजपा और राष्ट्रीय जनता दल को अलग अलग जीत मिली है।  इसमें नीतीश कुमार की पार्टी कही नहीं है।  इसलिए मुख्यमंत्री के रूप में जनता ने जिसे नकार दिया उसे मुख्यमंत्री पद पर लादना लोकतंत्र का अपमान है।  इस स्थिति में तीसरे नंबर पर आये नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया गया तो राजनीति क्षेत्र के लिए शोक की बात होगी।  हारने वाले पहलवान को विजय पदक देने जैसा होगा।  जनता दल यूनाइटेड को लोगों ने धूल चटाई है।  ऐसे शब्दों में सामना में शिवसेना ने नीतीश कुमार को फटकार लगाई है।

सामना में लिखा गया है कि तेजस्वी यादव जिद्दी नेता के तौर पर बिहार विधानसभा चुनाव में उभरे है।  तेजस्वी के रूप में केवल बिहार को ही नहीं बल्कि देश को एक शानदार युवा नेता मिला है।  वह अकेले लाडे और जीत के शिखर तक पहुंचे।  लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।  देश के राजनीति के इतिहास में इसे याद रखा जाएगा।  तेजस्वी यादव थोड़ा इंतजार करे, भविष्य उनका है।

सामना के लेख की मुख्य बातें

बिहार में एनडीए को मामूली जीत मिली है।  सच्ची  विजय 31 वर्षीय तेजस्वी यादव की हुई है।  तेजस्वी यादव की राजद पहले नंबर की पार्टी रही है।  यह भाग्य भाजपा को नहीं मिला ।   सत्ता मिलने का आनंद जरूर वह मना सकते है लेकिन विजय का शेहरा तेजस्वी यादव के सिर सजेगा।   इतने संघर्ष के बाद एनडीए को 125 सीट मिली और बहुमत का आंकड़ा 122 है।  तेजस्वी यादव के महागठबंधन को 110 सीटें मिली है।  8 सीटें 100 से 300 वोटों के अंतर से हारे है।

राजद ने गड़बड़ी का आरोप लगाया है।  राजद ने 119 विजय उम्मीदवारों की सूची जारी की है।  तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग नीतीश कुमार के निर्देशों का पालन कर रही है।  ओवेसी दवारा उम्मीदवार खड़ा किये जाने से गठबंधन के 15 उम्मीदवार हार गए।  चिराग पासवान की पार्टी के उम्मीदवार की वजह से नीतीश कुमार ने 20 उम्मीदवारों के चुनाव हारने की बात स्वीकार की है।  इतने के बाद भी नरेंद्र मोदी ने चिराग पासवान को नहीं समझाया।