सोशल मीडिया कंटेंट की देख-रेख नहीं करेगी सरकार 

समाचार ऑनलाइन
सोशल मीडिया पर परोसे जा रहे कंटेंट पर निगरानी रखने के मकसद से भारत सरकार ने सोशल मीडिया कम्युनिकेशन हब के गठन करने का फैसला किया था। सरकार की इस मंशा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। 18 जून को कोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी करते हुए उसके इस इरादे को सर्विलांस स्टेट बनाए जाने सरीखा बताया। अदालत की सख्ती के बाद सरकार ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं।
क्या था प्रस्ताव
सरकार का इरादा एक ऐसे प्लेटफॉर्म को बनाने का था जिसके माध्यम से सोशल मीडिया (फेसबुक, गूगल प्लस, ट्विटर, इंस्टाग्राम और लिंक्डइन, न्यूज ब्लॉग और फोरम) पर मौजूद कंटेंट पर नजर रखी जा सके। इससे सरकार जनता का रुख समझ सकती थी। अपनी नीतियों, योजनाओं और घोषणाओं के बारे में जनता के मूड इस माध्यम से समझना सरकार का मकसद था। ये प्लेटफॉर्म सभी भारतीय भाषाओं समेत अंग्रेजी, चीनी, जर्मनी, फ्रेंच और अरबी भाषा में काम करता।
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कहां तक पहुंची थी बात
सरकार ने 24 घंटे और सातों दिन सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिए दो बार निविदा विज्ञापन जारी किए। पहला जनवरी 2018 में और दूसरा अप्रैल में।मई में सूचना प्रसारण राज्यमंत्री ने कहा था कि कई कंपनियां अपने उत्पाद को लेकर जनता का रुख जानने के लिए इस तरह के टूल का इस्तेमाल करती हैं। सोशल मीडिया सार्वजनिक क्षेत्र है। इसे निजता का हनन नहीं माना जा सकता है। सरकार कई मौकों पर जनता का मूड जानना चाहती है।
 
ये थीं बड़ी आपत्तियां
सरकार के प्रस्तावित कदम सोशल मीडिया हब को अभिव्यक्ति की आजादी और निजता को बरकरार रखने की राह का रोड़ा माना गया। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मौलिक अधिकार बताते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर निजी जानकारी को नियंत्रित या इस्तेमाल करने की किसी को इजाजत नहीं दी जा सकती है।