‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ वाले सरदार पटेल को कितना जानते हैं आप?

लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की 143वीं जयंती पर आज उनकी 182 मीटर ऊंची विशाल प्रतिमा ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे. यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा यह प्रतिमा ‘स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी’ से दोगुनी ऊंची है. यह नर्मदा जिले में सरदार सरोवर बांध के पास साधु बेट टापू पर बनाई गई है. 182 मीटर ऊंची यह विशाल प्रतिमा देश के पहले गृहमंत्री को श्रद्धांजलि होगी, जिन्होंने 1947 के विभाजन के बाद राजाओं-नवाबों के कब्जे वाली रियासतों को भारत संघ में मिलाने में अहम योगदान दिया था. ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ मौजूदा समय में विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा चीन के स्प्रिंग टेम्पल ऑफ बुद्ध से भी 29 मीटर ऊंची है. चीन की प्रतिमा की ऊंचाई 153 मीटर है. सरदार पटेल की प्रतिमा न्यूयॉर्क स्थित93 मीटर ऊंची स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग दोगुना बड़ी है.

विंध्याचल व सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच नर्मदा नदी के साधु बेट टापू पर बनी इस मूर्ति को बनाने में करीब 2389 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. जिन वल्लभभाई पटेल के नाम पर इतनी बड़ी प्रतिमा बनाई गई है, उन्हीं के पोते गौतम पटेल उद्घाटन समारोह में शामिल नहीं होंगे.

वैसे, सरदार पटेल भी अपने वारिसों को राजनीति से दूर रखना चाहते थे. उन्होंने एक बार कहा था कि जब तक वो दिल्ली में हैं, तब तक उनके रिश्तेदार दिल्ली में कदम न रखें.

Statue of Unity ; पीएम नरेंद्र मोदी का सपना हुआ पूरा

सरदार पटेल एक ख्यातिप्राप्त वकील थे. पत्नी के असामयिक निधन के बाद दोनों संतानों को मुंबई में अंग्रेज़ गवर्नेस के पास छोड़कर वल्लभभाई पटेल बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गए थे. वहां से लौटने के बाद उनकी वकालत बहुत अच्छी चल निकली थी, लेकिन महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह ने उनके जीवन की दिशा बदल दी.

सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ. वे खेड़ा जिले के कारमसद में रहने वाले झावेर भाई और लाडबा पटेल की चौथी संतान थे. 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की. वल्लभ भाई की शादी झबेरबा से हुई. पटेल जब सिर्फ 33 साल के थे, तब उनकी पत्नी का निधन हो गया.

साल 1928 में वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्त्व में गुजरात में बारडोली सत्याग्रह हुआ था. उस समय प्रांतीय सरकार किसानों से भारी लगान वसूल रही थी. सरकार ने लगान में 30 फीसदी तक का इजाफा कर दिया था, जिसके चलते किसान बेहद परेशान थे. वल्लभ भाई पटेल  ने इसका कड़ा विरोध किया. सरकार ने इस आंदोलन को कुचलने की कई कोशिशें की, लेकिन अंत में विवश होकर सरकार को पटेल के आगे झुकना पड़ा और किसानों की मांगे पूरी करनी पड़ी. दो अधिकारियों की जांच के बाद लगान 30 फीसदी से 6 फीसदी कर दिया गया. बारडोली सत्याग्रह की सफलता के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि दी.

वैसे, अपने स्कूली जीवन में भी उन्होंने अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. नडियाद में उनके स्‍कूल के अध्यापक छात्रों को बाध्य करते थे कि पुस्तकें बाहर से न खरीदकर उन्हीं से खरीदें. वल्लभभाई ने इसका विरोध किया और छात्रों को अध्यापकों से पुस्तकें न खरीदने के लिए प्रेरित किया. परिणामस्वरूप अध्यापकों और विद्यार्थियों में संघर्ष छिड़ गया. 5-6 दिन स्‍कूल भी बंद रहा और अंत में जीत सरदार की हुई. अध्यापकों की ओर से पुस्तकें बेचने की प्रथा बंद हुई.

देश आजादी से पहले अलग-अलग रियासतों में बटा हुआ था. सरदार पटेल  ने 562 रियासतों का भारत में विलय करवाया. भारत का जो नक्शा ब्रिटिश शासन में खींचा गया था, उसकी 40 प्रतिशत भूमि इन देशी रियासतों के पास थी. आजादी के बाद इन रियासतों को भारत या पाकिस्तान में विलय या फिर स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया गया था. लेकिन पटेल अपनी दूरदर्शिता और चतुराई की बदौलत इन रियासतों का भारत में विलय करवाने में सफल रहे.

हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान आसिफ ने विलय के विकल्प को ठुकराते हुए स्वतंत्र रहने का फैसला किया था. सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को सबक सिखाने के लिए  ऑपरेशन पोलो चलाया. साल 1948 में चलाये गए इस ऑपरेशन के जरिए निजाम उस्मान अली खान आसिफ को सत्ता से अपदस्त कर दिया गया और हैदराबाद को भारत का हिस्सा बना लिया गया.

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सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री बनने वाले थे, लेकिन वे महात्मा गांधी की इच्छा का सम्मान करते हुए इस पद से पीछे हट गए और नेहरूजी देश के पहले प्रधानमंत्री बने. देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह,सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री रहे. सरदार पटेल के निधन के 41 वर्ष बाद 1991 में उन्हें भारत के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान भारतरत्न से नवाजा गया. सरदार पटेल के पास खुद का मकान भी नहीं था. वे अहमदाबाद में किराए एक मकान में रहते थे, 15 दिसंबर 1950 में मुंबई में जब उनका निधन हुआ, तब उनके बैंक खाते में सिर्फ 260 रुपए मौजूद थे.

कम ही लोग जानते हैं कि सरदार पटेल की बेटी मणि बेन ने साबरकांठा या मेहसाना से चुनाव लड़ा था. मणि बेन अपने सार्वजनिक जीवन में पिता पटेल के ही मार्ग पर चलती रहीं, लेकिन उनके भाई डाया भाई सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए. साल 1939 में पहली बार वह बॉम्बे म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के सदस्य के तौर पर चुने गए और वे 18 साल तक निगम के सदस्य बने रहे.