उपन्यास ‘मीशा’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, किताबों पर बैन की संस्कृति न अपनाएं

नई दिल्ली। समाचार ऑनलाइन
सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम भाषा में लिखे उपन्यास ‘मीशा’ पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया। सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम दैनिक मातृभूमि को निर्देश दिया है कि वो उपन्यास मीशा के विवादित अंशों का अंग्रेजी अनुवाद 5 दिनों के अंदर कोर्ट में पेश करें।
किताबों पर बैन की संस्कृति न अपनाए
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें किताबों पर बैन लगाने की संस्कृति नहीं अपनानी चाहिए। इससे विचारों का प्रवाह प्रभावित होता है। कोर्ट ने कहा कि अगर किताब में लिखी विषयवस्तु भारतीय दंड संहिता की धारा 292 के तहत नहीं आती हैं तो उन्हें बैन नहीं करना चाहिए।
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मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता एन. राधाकृष्णन के वकील गोपाल शंकरनारायण ने कोर्ट में दलील दी कि उपन्यास ‘मीशा’ के कुछ पैराग्राफ आपत्तिजनक हैं, क्योंकि उसमें हिंदू और हिंदू पुजारी का अपमान किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ ने मलयालम डेली मातृभूमि के वकील को उपान्यास के विवादित तीन पैराग्राफ का अनुवाद करके पांच दिनों में कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया है।
बता दें कि मीशा उपन्यास को युवा लेखक एम हरीश ने लिखा है। इस उपन्यास की रिलीज के पहले कुछ संगठनों ने जब केरल में आंदोलन किया तो हरीश ने इसकी रिलीज वापस ले ली। उपन्यास पर विवाद के बाद इसका प्रकाशन रोक दिया गया था, लेकिन बाद में इसे ऑनलाइन माध्यम से कई चरणों में रिलीज किया गया। उपन्यास के कई हिस्सों को ऑनलाइन सीरीज के माध्यम से प्रकाशित किया गया है। इसका एक हिस्सा जुलाई के दूसरे हफ्ते में जारी किया गया, जिसे लेकर काफी विवाद उत्पन्न हुआ। याचिकाकर्ता के मुताबिक केरल सरकार की ओर से उपन्यास के ऑनलाइन प्रकाशन पर रोक लगाने को लेकर कोई उचित कदम नहीं उठाए गए हैं।