कटु वचनों के लिए मशहूर जैन मुनि तरुण सागर महाराज की हालत बिगड़ी 

नई दिल्ली। समाचार ऑनलाइन 
कटु वचनों के लिए प्रसिद्घ जैन मुनि एवं संत तरूण सागर महाराज का स्वास्थ्य अब गंभीर हालत में है। उनका इलाज सफल होने को लेकर चिकित्सकों ने भी इनकार कर दिया है। मुनिश्री तरुण सागर महाराज को आचार्यश्री पुष्पदंत सागर महाराज ने समाधी लेने की अनुमति दे दी है, जिसके बाद मुनिश्री तरण सागर ने दिल्ली में संलेखना समाधि शुरू कर दी है। संत श्री देश-दुनिया में कड़वे प्रवचन के लिए प्रख्यात हैं। उन्होंने अपने कड़वे प्रवचन से लोगों के मन में हलचल पैदा कर दी थी। अन्य धर्मों के लोग भी उनके कड़वे वचन सुनने बड़ी संख्या में पहुंचते थे।
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मुनिवर तरुण सागर संथारा यानी जैन धर्म के अनुसार मृत्यु के समीप आते ही अन्न-जल का त्याग कर रहे हैं। वे फिलहाल दिल्ली में चातुर्मास स्थल हैं, जहाँ बीते दिन उनकी तबियत बिगड़ने से उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया था। हांलाकि कल उनकी हालत में थोड़ा सुधार आया था। मगर अब उनकी ताबियार फिर बिगड़ गयी है। उनकी हालत गंभीर रहने की जानकारी पाकर संतश्री सौभाग्य महाराज समेत पांच जैन मुनि दिल्ली पहुंचे हैं। यहां मुनि तरुण सागर ने अब इलाज कराने से मना कर दिया है। बीती शाम ही वे अपने अनुयायिओं के साथ दिल्ली के कृष्णानगर स्थित राधापुरी जैन मंदिर में चातुर्मास स्थल पर पहुंच गए।
दिल्ली के तक़रीबन सभी जैन संत तरुण सागर महाराज की हालत गंभीर रहने की खबर पाकर चातुर्मास स्थल पर पहुँच गए हैं। ज्ञात हो कि तरुण सागर महाराज अपने कटु वचनों के लिए पहचाने जाते हैं। उन्हें क्रांतिकारी संत के तौर पर भी जाना जाता है। मध्यप्रदेश सरकार ने तो उन्हें छह फरवरी 2002 को राजकीय अतिथि का दर्जा भी दिया है। कटु वचन नामक उनकी पुस्तकें काफी मशहूर हैं। उन्होंने हमेशा समाज के हर घटक को एकसाथ लाने की कोशिश की। यही नहीं उन्होंने मध्यप्रदेश और हरियाणा की विधानसभा में भी प्रवचन दिया है। हरियाणा का उनका प्रवचन काफी विवादों में भी घिरा रहा।
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कौन हैं तरुण सागर महाराज
मुनि तरुण सागर का असली नाम पवन कुमार जैन है। उनका जन्‍म दमोह (मध्यप्रदेश) के गांव गुहजी में 26 जून, 1967 को हुआ। उनकी मां का नाम शांतिबाई और पिता का नाम प्रताप चंद्र था। मुनिश्री ने 8 मार्च, 1981 को घर छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ में दीक्षा ली।

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क्या है संथारा
जैन धर्म के मुताबिक, मृत्यु को समीप देखकर कुछ व्यक्ति खाना-पीना समेत सब कुछ त्याग देते हैं। जैन शास्त्रों में इस तरह की मृत्यु को संथारा या संल्लेखना (मृत्यु तक उपवास) कहा जाता है। इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है। राजस्थान हाईकोर्ट ने 2015 में इसे आत्महत्या जैसा बताते हुए उसे भारतीय दंड संहिता 306 और 309 के तहत दंडनीय बताया। दिगंबर जैन परिषद ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी। संथारा की प्रक्रिया 12 साल तक चलती है। यह जैन समाज की आस्था का विषय है, जिसे मोक्ष पाने का रास्ता माना जाता है।