जन्मदिन विशेष: हिंदी विरोध से राजनीति में हुआ था करुणानिधि का पदार्पण

हिंदी विरोधी आंदोलन से राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले करुणानिधि आज 94 साल के हो गए हैं। खराब तबीयत की वजह से बीते कुछ समय से वह सक्रिय राजनीति से दूर हैं। तकरीबन 6 दशक पूर्व तमिलनाडु को एक हिंसक विरोध-प्रदर्शन हुआ था, यह प्रदर्शन हिंदी के खिलाफ था। इसी आंदोलन के बाद देश की सरकार ने अंग्रेज़ी को सहायक भाषा का दर्जा दिया था। हिंदी के विरोध में हुए इस सबसे बड़े आंदोलन के चलते तमिलनाडु थम सा गया था, इसकी अगुवाई अन्नादुरैई कर रहे थे। इस आंदोलन के समय करुणानिधि महज 14 साल के ज़रूर थे, लेकिन वह एक तरह से आंदोलन की आवाज बन गए थे।

14 साल की उम्र में शुरुआत
करुणानिधि का जन्म तिरुवरूर के तिरुकुवालाई में तीन जून 1924 को हुआ था। वह इसाई वेल्लालर समुदाय से संबंध रखते हैं,14 वर्ष की उम्र में राजनीति में प्रवेश करने वाले करुणानिधि पहली बार कुलाथालाई विधानसभा सीट से 1957 में विधायक बने और फिर बस आगे ही बढ़ते चले गए। कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने तमिल फिल्म में एक पटकथा लेखक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की थी। द्रविड़ आंदोलन के दौरान वह समाजवादी विचारों को बढ़ावा देने वाली कहानियां लिखने के लिए मशहूर थे और 1950 के दशक में उनके दो नाटकों को प्रतिबंधित कर दिया गया था।

कभी नहीं मिली हार
उनकी पार्टी का नाम डीएमके यानी द्रविड़ मुनेत्र कझगम है। करुणानिधि पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे हैं, इतना ही उन्हें अपनी सीट से कभी हार का मुंह नहीं देखना पड़ा। वह 12 बार विधायक चुने गए। करुणानिधि 1967 में पहली बार तमिलनाडु की सत्ता में आए, उस वक़्त उन्हें उन्हें लोक निर्माण मंत्री बनाया गया था। फ़िलहाल उनकी तबीयत ऐसी नहीं है कि वह सक्रिय राजनीति में उतर सकें, इसलिए स्टालिन डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। वहीं, उनकी बेटी और राज्यसभा सांसद कनिमोड़ी भी पार्टी का काम देखती हैं। तिरुवरूर सीट से विधायक करुणानिधि 2016 में अंतिम बार विधानसभा पहुंचे थे।