दिल्ली में चलेगी केजरीवाल की, सुप्रीम कोर्ट ने सीमित किए एलजी के अधिकार

नई दिल्ली: अरविंद केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) अनिल बैजल के बीच चल रही अधिकारों की लड़ाई में फैसला केजरीवाल के पक्ष में गया है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के बेंच ने सर्वसम्मति से कहा कि असली ताकत मंत्रिपरिषद के पास है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मंत्रिपरिषद के सभी फैसलों से उप-राज्यपाल को निश्चित रूप से अवगत कराया जाना चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इसमें उप-राज्यपाल की सहमति आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलजी को स्वतंत्र अधिकार नहीं सौंपे गए हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि कुछ मामलों को छोड़कर दिल्ली विधानसभा बाकी मसलों पर कानून बना सकती है। संसद का बनाया कानून सर्वोच्च है, एलजी दिल्ली कैबिनेट की सलाह और सहायता से काम करें। उन्होंने आगे कहा कि उपराज्यपाल दिल्ली के प्रशासक है, उनकी स्थिति बाकी राज्यपालों से अलग है। लिहाजा अगर उन्हें कैबिनेट की राय मंजूर न हो तो सीथे राष्ट्रपति के पास मामला भेज दें। सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने तीन आदेश दिए और तीनों ही निर्वाचित सरकार को अधिक शक्तियां देने के पक्ष में थे।

सलाह पर करना होगा काम
सुप्रीम कोर्ट के आदेश में साफ कहा गया कि लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार का अधिकार सर्वोपरि है। उपराज्यपाल को कैबिनेट की सलाह पर काम करना होगा। अगर वह किसी सलाह पर सहमत नहीं, तो फिर वह कारण बताते हुए इसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ किया कि दिल्ली को मिला केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा नहीं बदला जा सकता और यहां भूमि, पुलिस और लोक व्यवस्था का मामला एलजी के ही अधीन रहेगा।

संविधान पीठ ने की सुनवाई
आपको बता दें कि दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में 11 याचिकाएं दाखिल हुई थीं। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने पिछले साल दो नवंबर को इन अपीलों पर सुनवाई शुरू की थी। पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं। तीन जजों ने एक फैसला पढ़ा, जबकि दो जजों चंद्रचूड़ और जस्टिस भूषण ने अपना फैसला अलग से पढ़ा।

मिलजुल करें काम
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि लोकतांत्रिक मूल्य सर्वोच्च हैं। सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होनी चाहिए। सरकार जनता के लिए उपलब्ध हो और शक्ति का समन्वय जरूरी है। साथ ही उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य को समन्वय के साथ काम करना होगा। जनमत का महत्व है, इसे तकनीकी पहलुओं में नहीं उलझाया जा सकता है। हालांकि चीफ जस्टिस ने यह भी स्पष्ट किया कि एलजी दिल्ली के प्रशासक हैं। कोर्ट ने अपने फैसले कहा कि अराजकता के लिए कोई जगह नहीं हो सकती है और किसी को भी पूरी ताकत देना ठीक नहीं हो सकता। शक्ति को एक जगह केंद्रित नहीं किया जा सकता। फैसला सुनाते हुए कहा कि हर मामले में एलजी की सहमति अनिवार्य नहीं है। दोनों पक्षों को मिलकर काम करना होगा।

केजरी बोले- दिल्लीवासियों की जीत
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते हुए इसे दिल्ली की जनता की जीत करार दिया है। फैसले के तुंरत बाद मीडिया को संबोधित करते हुए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट की ऐतिहासिक टिप्पणी हैं, अब कोई भी फाइल नहीं भेजनी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि 3 विषय छोड़कर दिल्ली सरकार के पास सभी अधिकार मौजद हैं। कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली के प्रशासनिक कार्यों में एलजी मनमानी नहीं कर सकते हैं।

क्या कहा था हाईकोर्ट ने?
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि संविधान के अनुच्छेद-239 और 239एए को साथ-साथ देखने और बिजनस ट्रांजेक्शन ऑफ एनसीटी दिल्ली 1993 के तहत दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है, लेकिन 69वें संविधान संशोधन में इसमें विशेष प्रावधान जोड़ा गया है। इसका मतलब है कि अनुच्छेद-239 एए आने के बाद भी अनुच्छेद 239 हल्का नहीं होता है। इस कारण एलजी कैबिनेट की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं हैं।