एक के स्थान पर आ रहे अनेक…किसानों की लड़ाई ‘नए भविष्य’ के दोराहे पर, फैसले का इंतजार   

अमृतसर, भठिंडा. ऑनलाइन टीम : अन्ना आंदोलन और किसान आंदोलन में कई तरह की समानताएं हैं। ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ आंदोलन की तरह किसानों के आंदोलन का स्वरूप भी गैर-राजनीतिक है। उसने किसी नेता को अपने मंच पर जगह नहीं दी है। लोक संस्कृति की प्रमुख हस्तियां इसके पक्ष में बोल रही हैं। किसानों के लिए व्यापक सहानुभूति उमड़ रही है, उन्हें अन्ना के आंदोलनकारियों की तरह नेक और भुक्तभोगी माना जा रहा है।

इसके समर्थक भी सोशल मीडिया का वैसा ही बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं, जैसा अन्ना के आंदोलनकारी कर रहे थे। अब स्थिति यह है कि दिल्ली में किसानों के धरने ने नरेंद्र मोदी को वैसे ही मुकाम पर ला खड़ा किया है, जैसे मुकाम पर कभी ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर आ खड़ी हुई थीं या मनमोहन सिंह अन्ना आंदोलन के समय में आ खड़े हुए थे? भारत मोदी से इस सवाल के जवाब का इंतजार कर रहा है। यह जवाब भारत की राजनीतिक अर्थनीति, और आगे चलकर चुनावी राजनीति की भी दिशा तय करेगा। थैचर ने जब आर्थिक दक्षिणपंथ की ओर बुनियादी बदलाव किया था, तब उन्हें ऐसे ही विरोध का सामना करना पड़ा था। उन्होंने इस चुनौती से लोहा लिया, जीतीं और लौह महिला बन गईं। अगर वे दबाव के आगे झुक गई होतीं तो इतिहास के पन्ने पर कहीं हाशिये पर डाल दी गई होतीं। मोदी को भी इस वकत् बड़ा फैसला लेना होगा।

अन्यथा किसान तो जिद पर अड़े हैं। अब उन्होंने आंदोलन को जिंदा बनाए रखने के लिए एक बड़ी व्यावहारिक और असरदार तकनीक अपनाई है। जो किसान लगभग 15 दिनों से दिल्ली के बॉर्डर पर टिके हुए थे वे अपने खेतों की देखभाल के लिए वापस लौट रहे हैं, वहीं उनकी जगह लेने के लिए बड़ी तादाद में किसानों के ‘जत्थे’ पंजाब के विभिन्न जिलों से दिल्ली की ओर रवाना हो रहे हैं। 12 दिसंबर तक दिल्ली-जयपुर और दिल्ली-आगरा हाइवे भी जाम करने की चेतावनी दी जा चुकी है। ऐहतियातन दिल्ली आने-जाने वाले अधिकतर रास्ते बंद हैं। अगर आंदोलन ने रफ्तार पकड़ी तो सभी बॉर्डर बंद किए जा सकते हैं।

किसान दिल्ली से लगी सीमाओं पर हाइवे जाम करके बैठे हैं। दिनभर धरना-प्रदर्शन के बीच वक्त और खाली जगह मिलने पर खेती भी शुरू हो गई है। हाइवे के किनारे पड़ी जमीन पर रोपाई शुरू हो गई है। भले ही फसल बोने की यह कवायद सांकेतिक हो, मगर किसान इसके जरिए दिखाना चाहते हैं कि वे जहां भी रहेंगे, अन्न उपजाना जारी रखेंगे। वर्तमान की यह लड़ाई देश को नया भविष्य देने की दोराहे पर खड़ी है। फैसले का इंतजार है।