“तुम्हारा तो सिर्फ वक्त शुरू है, हमारा तो दौर आएगा”

संतोष मिश्रा

पिंपरी। एक तरफ महाराष्ट्र सरकार के मंत्रिमंडल के आखिरी विस्तार को लेकर पिंपरी चिंचवड़ शहर की उत्सुकता सतह पर पहुंच गई है। वहीं दूसरी तरफ शहर के सियासी गलियारों में एक अलग ही हड़कंप मचा हुआ है। इसकी वजह है सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही पोस्ट, जिसमें शेरो- शायरी के जरिए अपरोक्ष चेतावनी दी जा रही है। यह चेतावनी किसके लिए है, आनेवाले दिनों में कौन सा भूचाल आनेवाला है? जैसे कई सवाल सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इन पोस्ट्स चलते उठ खड़े हुए हैं।

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क्या है वायरल पोस्ट

व्हाट्सएप, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कुछ दिनों से एक पोस्ट वायरल हो रही है। इसमें ‘किंग मेकर’, ‘किंग विदाउट किंगडम’, ‘गरीबों का राजा’, ‘किंग ऑफ पिंपरी चिंचवड’ जैसे कई नामों से पहचाने जाने वाले शहर के कद्दावर नेता आजमभाई पानसरे की तस्वीरें झलक रही है। इन तस्वीरों के साथ ‘अभी कुछ देर की खामोशी है, फिर कानों में शोर मचेगा। तुम्हारा सिर्फ वक्त शुरू है, हमारा तो दौर आएगा।’ ऐसे पोस्ट वायरल हो रहे हैं। इस तरह की पोस्ट से पानसरे समर्थकों का इशारा किनके तरफ है? यह सवाल हर किसी के मन में कौंध रहा है।

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उत्सुकता, उत्साह और चिंता
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा फिर एक बार राज्य मंत्रिमंडल के विस्तार के संकेत दिए जाने के बाद पिंपरी चिंचवड़ फिर चर्चा में आया है। क्योंकि इस विस्तार में भाजपा विधायक लक्ष्मण जगताप, महेश लांडगे और मावल के विधायक बाला भेगड़े के नाम चर्चा में आते हैं। ज्यादा चर्चा जगताप और लांडगे की होती है क्योंकि उनके नेतृत्व में पिंपरी चिंचवड़ मनपा से राष्ट्रवादी कांग्रेस और पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार की सत्ता उखाड़ फेंकने और भाजपा का परचम लहराने में सफलता मिली है। उत्सुकता और उत्साह के माहौल में भाजपा के खेमे में चिंता भी है। इसकी वजह है आजमभाई पानसरे, जिनका विधानपरिषद में लगातार दूसरी बार पत्ता कट गया।
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हर किसी की जरूरत

पुणे और पिंपरी चिंचवड़ शहर की सियासत की समझ रखने वाला हर कोई आजमभाई पानसरे की शख्सियत और उनकी अहमियत से वाकिफ है। उनके नाम के साथ ‘द किंग ऑफ विदाउट किंगडम’ यानी बिना राजधानी का राजा यह उल्लेख हमेशा किया जाता है। शहर का नेतृत्व चाहे किसी के भी हाथ हो मगर झुग्गी- बस्तियों और रोजी- रोटी के लिए शहर में बसे ‘बाहरियों’ के लिए पानसरे ही विधायक, सांसद सबकुछ हैं। यही नहीं शहर की झुग्गी- बस्तियों में उन्हीं का शब्द मायने रखता है। यही वजह है कि शहर में चुनाव चाहे लोकसभा के हो या विधानसभा, मनपा के हो या फिर शहर से सटे कैंटोनमेंट बोर्ड या ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों के, सभी में पानसरे की भूमिका अहम होती है। मनपा से लेकर दिल्ली तक प्रतिनिधित्व कर रहे और कर चुके कईयों को इस बात का एहसास है।

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पोस्ट्स से झलक रहा आक्रोश

पिंपरी चिंचवड़ मनपा में सत्ता परिवर्तन का जितना श्रेय भाजपा विधायक लक्ष्मण जगताप और महेश लांडगे को जाता है उतना ही श्रेय पानसरे को भी जाता है। क्योंकि उनके बिना भाजपा यहां आज स्पष्ट से ज्यादा बहुमत वाली स्थिति में नहीं आ पाती, इससे स्थानीय भाजपाई भलीभांति परिचित है। राष्ट्रवादी कांग्रेस खासकर शरद पवार का दामन छोड़कर जब पानसरे भाजपा में दाखिल हुए थे तब मुख्यमंत्री और दूसरे नेताओं ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने और उनके पुनर्वसन का भरोसा दिलाया था।

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कैबिनेट दर्जे का महामंडल या आयोग का अध्यक्ष पद लेने से उन्होंने तकरीबन इनकार कर दिया था। तब से उन्हें विधानपरिषद में मौका देने की बात और चर्चा चल रही है। लगातार दूसरी बार पानसरे का पत्ता कट गया। दो साल तक विधानपरिषद के चुनाव होने नहीं है, ऐसे में पानसरे का पुनर्वसन सवालों के घेरे में आ गया है। भाजपा में भी उनके साथ इंसाफ नहीं हो रहा। यह इस राय के साथ उनके समर्थकों में भारी आक्रोश देखा जा रहा है। उनका यह आक्रोश सोशल मीडिया पर वायरल हो रही पोस्ट्स से साफ साफ़ झलक रहा है।