पति-पत्नी के ऊपर निराधार आरोप लगाना मानसिक क्रूरता : कोर्ट

बेंगलुरु। समाचार एजेंसी

पति या पत्नी पर निराधार आरोप लगाना या उनके चरित्र पर बिना किसी सबूत के उंगली उठाना मानसिक क्रूरता है। कोर्ट ने एक तलाक की अर्जी की सुनवाई के दौरान यह बात कही। अदालत ने पुणे के एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें तलाक की अनुमति दे दी क्योंकि उनकी पत्नी अपने पति पर लगाए गए आरोपों को साबित नहीं कर सकीं।

अदालत की डिविजन बेंच ने अपनी सुनवाई के दौरान कहा कि पत्नी ने आरोप लगाने से पहले उसे साबित करने के बारे में नहीं सोचा और लगाए गए आरोपों को साबित भी नहीं कर पाईं। जस्टिस विनीत कोठारी और एचबी प्रभाकरा शास्त्री ने कहा, “इस तरह के वर्गीकृत और बड़े आरोप लगाए जाने के बाद जरूरी है कि उसे साबित किया जाए। अन्यथा इस तरह के गंभीर आरोप लगाना मानसिक क्रूरता माना जाएगा।”

पत्नी को निर्वाह के लिए 10 लाख

हाईकोर्ट ने पति को निर्देश दिया है कि वह अपनी तलाकशुदा पत्नी को निर्वाह के लिए 10 लाख रुपये दें। इसके अलावा कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को भी बरकरार रखा है। जिसमें इस जोड़े के बेटे के खर्च के लिए 7500 रुपये देने का फैसला दिया गया था।

पत्नी ने लगाया था मारपीट का आरोप

पत्नी ने अपने पति पर आरोप लगाया था कि वह झगड़ालू प्रवृत्ति के हैं इसलिए उन्हें बेंगलुरु से पुणे ट्रांसफर कर दिया गया। महिला ने यह भी कहा था कि उनके पति ने उन्हें मारा-पीटा और घर से निकाल दिया। महिला ने यह भी कहा था कि उनके पति को  शराब की लत है जिससे उनकी एक बार रास्ते पर जा एक व्यक्ति से झगड़ा हो गया था और मारपीट की थी।

अवैध संबंध का आरोप लगाया

इसके अलावा महिला ने अपने पति पर अन्य महिलाओं से अवैध संबंध रखने और उनपर पैसे खर्च करने का भी आरोप लगाया था। हालांकि, महिला अपने इन आरोपों को कोर्ट के सामने साबित कर पाने में नाकाम रहीं।

9 साल पहले शुरू हुई लड़ाई

दोनों की शादी 5 दिसंबर 2003 को बेलागावी में हुई थी। इनके बीच 2009 से लड़ाई शुरू हुई। पति का आरोप है कि उनकी पत्नी एकबार अपने मायके गईं तो लौटकर नहीं आईं। उसी समय महिला ने खुद के लिए और अपने बेटे के लिए मेंटनेंस खर्च दिए जाने की मांग करते हुए एक याचिका दायर कर दी। महिला ने प्रोटेक्शन ऑफ वुमन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस ऐक्ट के तहत शिकायत की।

कानूनी लड़ाइयों से परेशान पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दाखिल कर दी वह खारिज हो गई। हांलाकि हाईकोर्ट ने तलाक की अर्जी स्वीकार कर पति के हक़ में फैसला दिया है।