किस तरह लिवरपूल में अपराध रोकने में कामयाब रहे हैं मोहम्म्मद सालाह

लिवरपूल (आईएएनएस) : समाचार ऑनलाईन – हमेशा से कहा जाता रहा है कि खेल राजनीतिक सीमाओं से परे है क्योंकि यह दिलों को जोड़ता है। एसे में अगर कोई खिलाड़ी किसी देश, शहर या समुदाय में भाईचारा, शांति और खुशहाली के लिए जिम्मेदार हो तो भला इससे अच्छी बात क्या हो सकती है।

इंग्लिश प्रीमियर लीग क्लब लिवरपूल के सबसे बड़े स्टार खिलाड़ी मोहम्मद सालाह इसका सबसे बड़ा उदाहरण बनकर सामने आए हैं। ब्रिटेन के समाचार पत्र द इंडिपेंडेंट के मुताबिक स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा कराए गए एक शोध से यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि 2017 में सालाह के लिवरपूल आने के बाद से यहां धार्मिक हिंसा खासतौर पर इस्लाम के प्रति द्वेष में 19 फीसदी की कमी आई है।

लिवरपूल ने हाल ही में छठी बार चैम्पियंस लीग खिताब जीता है और उसकी इस जीत में सालाह की अहम भूमिका रही थी, जिन्होंने ईपीएल क्लब टोटेनहम हाट्सपर के खिलाफ मेड्रिड में खेल गए खिताबी मुकाबले में अपनी टीम के लिए पहला गोल किया था। लिवरपूल ने वह मैच 2.0 से जीता था।

स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के मुताबिक लिवरपूल में मिस्र निवासी मुसलमान खिलाड़ी सालाह की मौजूदगी भर से इस शहर में इस्लाम को लेकर लोगों की सोच पर सीधा और सकारात्मक असर पड़ा है। शोध के मुताबिक जून 2017 में इटली के क्लब रोमा से 3.4 करोड़ पाउंड में सालाह के इस इंग्लिश शहर में आने के बाद से मुसलमान विरोधी धामिर्ंक हिंसा में 18ण्9 फीसदी कमी देखी गई है।

जून 2017 से लेकर जून 2019 तक इस शहर में अपराध के किसी अन्य प्रकार में इतनी कमी नहीं आई है। और तो और दूसरे प्रीमियर लीग क्लबों की तुलना में लिवरपूल प्रशंसकों द्वारा किए जाने वाले मुसलमान विरोधी ट्वीट्स की संख्या में भी भारी कमी आई है।

समाचार पत्र के मुताबिक शोधकर्ता लिखते हैं, “सालाह के बढ़ते कद ने लोगों को इस्लाम के करीब किया और इसी कारण लिवरपूल एफसी के घर में धामिर्ंक हिंसा में काफी कमी आई। खासतौर पर मुसलमानों को लेकर लोगों की सोच बदली।”

सालाह इस क्लब के लिए एक क्रांति की तरह रहे हैं। वह दो मौकों पर प्रीमियर लीग गोल्डन बूट अवार्ड जीत चुके हैं और उनके टीम में रहते हुए लिवरपूल लगातार दो बार चैम्पियंस लीग के फाइनल में पहुंचने सफल रहा। बीते साल हालांकि उसे हार मिली थी लेकिन इस साल वह छठी बार खिताब तक पहुंचने में सफल रहा।

सालाह जब भी कोई अहम गोल करते हैं तो वह सुजूद, जिसे अरबी में सजदा भी कहते हैं करते हैं। इसका अर्थ मक्का में स्थित काबा की दिशा में मुंह करके अल्लाह को साष्टांग प्रणाम करना होता है। इस्लाम में रोज की प्रार्थनाओं, सालात में सजदा किया जाता है। सजदे के दौरान, एक मुसलमान अल्लाह के लिए प्रतिष्ठा और सम्मान करते हुए प्रशंसा और तारीफ बयान करता है। यह अवस्था माथे, नाक, दोनों हाथों, घुटनों और पैरों की सब उंगलियां का एक साथ जमीन को छूना शामिल है।

लिवरपूल के प्रशंसक अपने इस 25 साल के चहेते खिलाड़ी से इतना प्यार करते हैं कि उन्होंने इसे लेकर एक गीत बना लिया है और वे हर मैच के दौरान सालाह के लिए इसे गाते हैं। यह गीत कुछ इस प्रकार है, “मो सा.ला.ला.ला.लाह, मो सा.ला.ला.लाह, अगर वह आपके लिए अच्छे हैं तो हमारे लिए भी अच्छे हैं। अगर वह कुछ और गोल करते हैं तो मैं मुसलमान हो जाऊं”।

शोध के मुताबिक एक अच्छे खिलाड़ी और बेहतरीन इंसान के रूप में अपने साथियों और लिवरपूल में मशहूर सालाह के कारण इस्लाम के प्रति लोगों की विचारधारा में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। शोध में कहा गया है, “किसी भी समाज में रहने वाले दूसरे धर्म के बड़े लोगों का सकारात्मक व्यवहार और अच्छे कर्म उस धर्म के प्रति लोगों की सोच में सकारात्मक बदलाव लाते हैं, यह साबित हो चुका है। एसे में सालाह के लिवरपूल आने के बाद इस्लाम के प्रति लोगों के बीच बढ़ती सहिष्णुता एक बड़े बदलाव का प्रतीक है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए।”