राफेल डील पर शरद पवार का पीएम मोदी को समर्थन देने पर इस्तीफा पर चर्चा
राफेल डील मामले में हर दिन नयी-नयी बाते सामने आ रही है। अब लोकसभा सांसद और पार्टी महासिचव तारिक अनवर ने शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से इस्तीफा देने की बात सामने आयी है। खबरों की मानें तो उन्होंने राफेल मुद्दे पर पार्टी अध्यक्ष शरद पवार द्वारा पीएम मोदी का समर्थन करने से नाराज होकर यह कदम उठाया है। तारिक अनवर को पार्टी के शीर्ष नेताओं में शामिल किया जाता है। हालांकि पार्टी छोड़ने को लेकर अभी तक उनके तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।
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तारिक अनवर बिहार के कटिहार से लोकसभा के सदस्य हैं। अनवर कई बार कटिहार से एनसीपी के लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं। राफेल डील को लेकर जहां देश का सियासी पारा गर्म है वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के मुखिया शरद पवार ने कहा था कि, ‘मुझे निजी तौर पर लगता है कि लोगों के दिमाग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नियत को लेकर कोई शक नहीं है।’
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खबरे की माने तो शरद पवार के इस बयान के बाद ही तारिक अनवर ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रवादी काँग्रेस पार्टी में उनका काफी योगदान रहा है। पी ए संगमा और तारिक अन्वर ये दोनों राष्ट्रवादी के उत्तर भारत के लिए प्रमुख चेहरा थे।लेकिन अनवर के इस्तीफा के बाद पार्टी को बड़ा झटका लगा है।
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मीडिया खबरों के अनुसार एमएमआरसीए के कॉम्पिटीशन में अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डसॉल्ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कन, रूस का मिखोयान मिग-35 और स्वीडन के साब जैस 39 ग्रिपेन जैसे एयरक्राफ्ट शामिल थे। छह फाइटर जेट्स के बीच राफेल को इसलिए चुना गया क्योंकि राफेल की कीमत बाकी जेट्स की तुलना में काफी कम थी। इसके अलावा इसका रख-रखाव भी काफी सस्ता था।
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साल 2012 में राफेल को एल-1 बिडर घोषित किया गया और इसके मैन्युफैक्चरर दसाल्ट एविएशन के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत शुरू हुई। लेकिन आरएफपी अनुपालन और लागत संबंधी कई मसलों की वजह से साल 2014 तक यह बातचीत अधूरी ही रही।
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यूपीए सरकार के दौरान इस पर समझौता नहीं हो पाया, क्योंकि खासकर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के मामले में दोनों पक्षों में गतिरोध बन गया था। दसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले 108 विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी. दसाल्ट का कहना था कि भारत में विमानों के उत्पादन के लिए 3 करोड़ मानव घंटों की जरूरत होगी, लेकिन एचएएल ने इसके तीन गुना ज्यादा मानव घंटों की जरूरत बताई, जिसके कारण लागत कई गुना बढ़ जानी थी।
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जिसके बाद साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार बनी तो उसने इस दिशा में फिर से प्रयास शुरू किया। पीएम की फ्रांस यात्रा के दौरान साल 2015 में भारत और फ्रांस के बीच इस विमान की खरीद को लेकर समझौता किया। इस समझौते में भारत ने जल्द से जल्द 36 राफेल विमान फ्लाइ-अवे यानी उड़ान के लिए तैयार विमान हासिल करने की बात कही। समझौते के अनुसार दोनों देश विमानों की आपूर्ति की शर्तों के लिए एक अंतर-सरकारी समझौता करने को सहमत हुए।
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लेकिन मीडिया में आई तमाम खबरों में यह दावा किया गया कि यह पूरा सौदा 7.8 अरब रुपये यानी 58,000 करोड़ रुपये का हुआ है और इसकी 15 फीसदी लागत एडवांस में दी जा रही है। भारत को इसके साथ स्पेयर पार्ट और मेटोर मिसाइल जैसे हथियार भी मिलेंगे जिन्हें कि काफी उन्नत माना जाता है।
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विपक्ष सवाल उठा रहा है कि अगर सरकार ने हजारों करोड़ रुपए बचा लिए हैं तो उसे आंकड़े सार्वजनिक करने में क्या दिक्कत है. कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यूपीए 126 विमानों के लिए 54,000 करोड़ रुपये दे रही थी, जबकि मोदी सरकार सिर्फ 36 विमानों के लिए 58,000 करोड़ दे रही है। कांग्रेस का आरोप है कि एक प्लेन की कीमत 1555 करोड़ रुपये हैं, जबकि कांग्रेस 428 करोड़ में रुपये में खरीद रही थी. कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी सरकार के सौदे में ‘मेक इन इंडिया’ का कोई प्रावधान नहीं है।
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