पिंपरी चिंचवड़: खिलाफत की जंग में अकेले पड़ गए विपक्षी दल के नेता

पिंपरी। समाचार ऑनलाइन

स्थापना से लेकर लगातार सत्ता की कुर्सी से चिपके रहे राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेताओं के सत्ता का मद अब तक छूट न सका है। एक विपक्षी दल के तौर पर आक्रामक भूमिका की बजाए राष्ट्रवादी के नगरसेवक अभी भी खुद को विपक्ष के सदस्य म तौर पर स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। नतीजन सत्तादल भाजपा के विरुद्ध खिलाफत की जंग में विपक्ष के नेता दत्ता साने अकेले ही नजर आ रहे हैं।

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जब राष्ट्रवादी पिंपरी चिंचवड़ मनपा के सत्ता में पाशवी बहुमत के साथ लगातार 10 सालों से आसीन थी, तब भाजपा और शिवसेना के दो से चार नगरसेवकों ने उसकी नाक में दम कर रखा था। विपक्ष की तोप माने जाने वाले इन नगरसेवकों ने न केवल सभागृह में राष्ट्रवादी का डटकर मुकाबला किया बल्कि उसे कई बड़े फैसले बदलने के लिए विवश कर दिया। भ्रष्टाचार के कई मामले सामने लाकर राष्ट्रवादी की नींद हराम कर रख दी थी। जिन कारणों से राष्ट्रवादी को सत्ता से उतरना पड़ा उनमें ये कारण भी अहम और निर्णायक साबित हुए।

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फरवरी 2017 के मनपा चुनाव में विपक्ष को डबल फिगर तक न पहुंचने देने वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस 36 नगरसेवकों तक सिमटकर रह गई। पार्टी को गतवैभव प्राप्त कर देने के लिए सत्तादल भाजपा की खिलाफत की जंग तीव्र होना लाजिमी था। 36 में से कुछ अपवाद छोड़ दिये जाय तो राष्ट्रवादी के सभी नगरसेवक अनुभवी और जानकार हैं। इसके बावजूद न सभागृह में और न ही मनपा में सत्तादल के खिलाफ उम्मीद के मुताबिक विरोध की आवाज बुलंद नहीं हो पाती। इसकी एक वजह राष्ट्रवादी के नवरसेवकों की प्रशासन के अधिकारियों और ठेकेदारों की सांठगांठ भी बताई जा रही है।

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मनपा चुनाव के बाद पहले विपक्षी नेता के तौर पर पूर्व महापौर योगेश बहल की नियुक्ति की गई थी। उनके राजनीतिक करियर में यह पहला मौका था जब वे विपक्ष में शामिल हैं। उन्हें वैसे भी प्रशासन का हिमायती कहा जाता है। नतीजन जैसे उम्मीद थी वे विपक्षी दल के नेता पद के साथ इंसाफ न कर पाए। उनके बाद इस पद की जिम्मेदारी वरिष्ठ नगरसेवक दत्ता साने को सौंपी गई। एक आक्रामक नेता के तौर पर परिचित साने शुरू से ही भाजपा के खिलाफ आक्रमक रहे।

कचरा संकलन, प्रधानमंत्री आवास योजना, वेस्ट टू एनर्जी, स्मार्ट सिटी जैसी कई परियोजना के टेंडर में गोलमाल के आरोपों से उन्होंने सत्तादल की नाक में दम कर छोड़ा है। मगर खिलाफत की इस जंग में वे अकेले ही नजर आ रहे हैं। यहां तक कि मनपा आयुक्त के साथ उनकी जमकर कहासुनी के बाद भी राष्ट्रवादी के नेताओं के मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला। कुल मिलाकर ऐसी भूमिका के चलते राष्ट्रवादी आने वाले चुनाव में भाजपा का मुकाबला कैसे करेगी? यह सवाल खड़ा हुआ है। दत्ता साने इस मसले पर पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार से मिलकर चर्चा करेंगे, ऐसा राष्ट्रवादी के खेमे से बताया जा रहा है।

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