सरकार की अब तक की पॉलिसी महाराष्ट्र व मराठी संस्कृति के खिलाफ : लक्ष्मीकांत देशमुख

पुणे : समाचार ऑनलाइन – मराठा भाषा अनिवार्य नहीं करने की सरकार की अब तक की पॉलिसी महाराष्ट्र व मराठी संस्कृति की दृष्टि से हित में नहीं है। राज्य में अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है। सड़कें हिंदीमय या अंग्रेजीमय हो गई हैं। हमारे अंग्रेजी भाषा का गुलाम होने का डर है। महाराष्ट्र में अंग्रेजी बोलने वाले शहरी अमीर व मराठी बोलने वाले ग्रामीण गरीबों जैसे फासले बन गए हैं। अगर समय रहते इसका उपाय नहीं किया गया तो यह फासला बढ़ता जाएगा। साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने सोमवार को सरकार को नसीहत दी। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि राजा आप गलत कर रहे हो।राजा जागेगा तभी प्रजा जागेगी।

मराठी भाषा को पहली से बारहवी तक सभी माध्यम के स्कूलों में अनिवार्य रूप से लागू करने के लिए लक्ष्मीकांत देशमुख पिछले 10 महीने से प्रयास कर रहे हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा देशमुख को कानून का प्रारूप तैयार करके देने का सुझाव देने के बाद देशमुख ने कानून का प्रारूप बनाकर सरकार के समक्ष रखा। मराठी भाषा को अनिवार्य करने के संदर्भ में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और शिक्षा व भाषा मंत्री विनोद तावड़े ने अनुकूलता दिखाई। लेकिन यह विषय सरकार के एजेंडे में नहीं आया।इसके विपरीत हाल ही में सम्पन्न हुए शीत सत्र में विनोद तावड़े द्वारा इस संदर्भ में दिए गए बयान से भ्रम पैदा हो गया है।इसके मद्देनजर देशमुख ने पत्रकार-वार्ता के जरिए मराठी मुद्दे की तरफ सरकार का ध्यान खींचा है। पूर्व कुलगुरु डॉ. प्रमोद तेलगिरि, शिक्षा विभाग के पूर्व डायरेक्टर डॉ. वसंत कालपांडे, प्रा. हरि नरके व महाराष्ट्र साहित्य परिषद के कार्याध्यक्ष प्रा. मिलिंद जोशी उपस्थित थे।

लक्ष्मीकांत देशमुख ने मुख्यमंत्री को इस संबंध में पत्र भेजा है। पत्र में उन्होंने कहा है कि सरकार की पॉलिसी की वजह से अंग्रेजी स्कूलों की संख्या बढ़ी है। सब्सिडी देनी पड़ती है इसलिए नये मराठी स्कूल शुरू नहीं किए जा रहे हैं। नियम होने के बावजूद केंद्रीय बोर्ड के कई स्कूलों में मराठी नहीं पढ़ाई जाती है। केवल आदेश जारी करने से कुछ नहीं होगा। कानून के बिना अंग्रेजी स्कूल मराठी नहीं पढ़ाएंगे। मराठी नहीं आने पर भी काम नहीं रूकता है इसलिए गैर मराठी लोग मराठी नहीं सीख रहे हैं। भाषा मर गयी तो देश भी मर जाता है। वैसा ही हाल महाराष्ट्र सरकार का है।हम साहित्यकार व मराठीप्रेमी सरकार को कभी माफ नहीं करेंगे।

अन्य भाषाओं को सम्मान और मातृ भाषा केवल विकल्प
उन्होंने कहा है कि तमिलनाडू, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश व गुजरात में मातृभाषा की अनिवार्यता का कानून है।हमारे नेताओं को हर बात में गुजरात का पैटर्न प्यारा है, लेकिन मातृभाषा को लेकर गुजरात पैटर्न क्यों नहीं? यह सवाल प्रा।हरि नरके ने खड़ा किया।उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में अन्य भाषाओं का सम्मान और मातृभाषा केवल विकल्प बनकर रह गया है।मराठी का पक्ष लेने वाले नेता हिंदी में भाषण देने लगे हैं।यह उल्टी यात्रा है।राजनेता हमेशा मराठी संस्कृति पर बोलते हैं लेकिन उनका प्रेम कम हो रहा है।मराठी के मुद्दे पर राजनीतिक इच्छा शक्ति नहीं दिखाया गया तो घोड़ा मैदान पास में है।मराठी मतदाताओं को यह बताने का वक्त आ गया है।