रक्षा क्षेत्र में निजी निवेश देश की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक : शरद पवार

कामगार परिषद् में शरद पवार की राय 
पिंपरी। संवाददाता – रक्षा विभाग के कारखानों में निजी निवेश को प्राथमिकता देने का फैसला केंद्र सरकार ने किया है, यह देश की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है। निजी पूंजीपतियों को रक्षा क्षेत्र में निवेश की अनुमति मिलने से उसके जरिए कोई घटक घुसपैठ कर सकता है और उसका फायदा शत्रु राष्ट्र को हो सकता है। इस फैसले की बड़ी कीमत देश को चुकानी पद सकती है, यह संभावना देश के भूतपूर्व रक्षा मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस के हाईकमान शरद पवार ने जताई है।
दिवंगत भिकू वाघेरे पाटिल प्रतिष्ठान द्वारा पिंपरी चिंचवड़ के रहाटणी में आयोजित कामगार परिषद में उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायलय को राफेल डील की जानकारी देने से मना करने की भूमिका पर निशाना साधते हुए कहा कि, इसका सीधा सीधा मतलब है कि दाल में कुछ काला जरूर है। साथ ही उन्होंने अगले साल 8 व  9 जनवरी को देशभर के औद्योगिक क्षेत्र के मजदूरों द्वारा घोषित राष्ट्रीय हड़ताल को समर्थन देने की घोषणा भी की। इस मौके पर सांसद शिवाजीराव आढलराव पाटील, श्रीरंग बारणे, न्यूनतम वेतन सलाहकार मंडल के अध्यक्ष डॉ. रघुनाथ कुचिक, सिटू के सेक्रेटरी अजित अभ्यंकर, सी. श्रीकुमार, अरविंद श्रोत्री, कैलास कदम, कॉ. मेधा थत्ते, बबनराव झिंजुर्डे, विजय पालेकर, मारुती जगदाले, उदय भट, प्रतिष्ठान के अध्यक्ष संजोग वाघेरे, इस परिषद् के निमंत्रक अरुण बोर्हाडे आदि उपस्थित थे।
सर्वोच्च न्यायलय ने राफेल डील की जानकारी बंद लिफ़ाफ़े में देने के आदेश केंद्र सर्कार को दिए थे। मगर सरकार ने इससे मना कर दिया। एक ओर देश सूचना अधिकार जैसा कानून पारित किया गया है और दूसरी ओर सरकार ही इस तरह की भूमिका अपना रही है। इससे साफ़ होता है कि दाल में कुछ काला है। रक्षा क्षेत्र में निजी निवेश की अनुमति देने का फैसला भी देश की सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक साबित होगा। केंद्र सरकार की मजदूर क्षेत्र की नीतियों पर निशाना साधते हुए पवार ने कहा कि सरकार की किसी भी योजना का लाभ जनता को नहीं मिल सका। देश में जब तक पूंजीगत निवेश नहीं बढ़ेगा तब तक रोजगार सृजन नहीं हो सकता। आज देश के मजदूर मुसीबतों में घिरे हैं।
कॉन्ट्रैक्ट लेबर और ट्रेनी लेबर के लिए अमल में लाये गए कानून में सुधर करने की जरुरत है। न्यूनतम वेतन सलाहकार मंडल तो गत चार साल से खुद निराधार था, अब माह भर पूर्व उसे अध्यक्ष मिल सका है। इससे सरकार मजदूरों के मसलों पर कितनी गंभीर है, यह पता चलता है। गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल के स्मारक के लिए साढ़े तीन हजार करोड़ रूपये खर्च किये गए। इसके लिए केंद्र सरकार की कंपनियों से निधि जमा की गई, जबकि जरुरत हर राज्य की सरकारों से मदद लेने की थी। सरकारी कंपनियों से इस तरह से निधि जमा करना कितना उचित है? यह सवाल भी शरद पवार ने उठाया।