शोले का रामगढ़ गांव, अब घूमने आते हैं टूरिस्ट

मुंबई । समाचार ऑनलाइन

15 अगस्त 1975 को हिंदी सिनेमा की कालजयी फिल्म शोले रिलीज हुई थी फिल्म में सबकुछ था। एक्‍शन, कॉमेडी, रोमांस और ट्रैजडी। ये फिल्म मल्टी स्टारर थी लेकिन सबके किरदार कुछ इस तरह थे कि आज भी कलाकारों को उनके फ़िल्मी किरदार के नाम से बुलाया जाता है। इन्हीं में एक अमजद खान का भी किरदार।बताने की जरूरत नहीं कि ‘गब्बर’ हिंदी सिनेमा का ऐसा डरावना खलनायक है जिसका नाम इतिहास में दर्ज हो गया। पूरी फिल्म की शूटिंग कर्नाटक के बंगलूरू और मैसूर के बीच स्थित पहाड़ियों से घिरे ‘रामनगरम’ में हुई थी।

दक्षिण का ‘रामनगरम’ को डकैतों के आतंक से पीड़ित उत्तर भारत का एक गांव रामगढ़ की शक्ल दी गई। यहां लगभग दो साल से ज्यादा फिल्म की शूटिंग हुई। निर्माताओं ने रामगढ़ के रूप में एक पूरे गांव को बसाया। गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क का निर्माण किया। वैसे ये गांव शोले से पहले भी था, लेकिन शोले के बाद ही लोगों के बीच इस गांव की पहचान हुई। बाद के कुछ सालों में ये पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी बना। जब फिल्म की शूटिंग खत्म हुई लोगों ने रामनगरम के एक हिस्से को ‘सिप्पी नगर’ का नाम देकर निर्माताओं का आभार जताया। शोले फिल्म की शूटिंग 1973 से 1975 के बीच हुई थी। आज भी ठाकुर का गांव रामगढ़ और गब्बर के इलाके को देखने यहां बहुत संख्या में लोग पहुंचते हैं।

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रामनगरम की पहाड़ियों में शोले की शूटिंग के लिए रामगढ़ नाम का एक गांव बसाया गया था। इसके लिए काफी सारे निर्माण और साजोसामान की प्रक्रिया पूरी की गई थी। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जब शोले फिल्म की शूटिंग खत्म हुई तब प्रोडक्शन टीम ने गांव उजाड़ दिया। मुंबई लौटते वक्त जीपी सिप्पी चाहते थे कि रामगढ़ गांव बसाने के लिए जो कीमती सामान खरीदा गया था उसे स्थानीय सेठ पीवी नागराजन को एक लाख रुपये में बेंच दे। लेकिन बात नहीं बन पाई.आखिरकार गांव के निर्माण में इस्तेमाल सारा सामान बांट दिया गया। कुछ सामान नीलाम कर दिया गया। और काफी सारा सामान फिल्म यूनिट के साथ काम कर रहे मजदूरों को दे दिया गया था।