पालघर में ‘बाहरी’ के मुद्दे से पार नहीं पा सकी शिवसेना

 मुंबई: पुणे समाचार आॅनलाइन

लोकसभा और विधानसभा की कुछ सीटों पर हुए उपचुनाव भाजपा के लिए इस बार भी निराशाजनक साबित हुए। पार्टी के लिए राहत की बात बस इतनी है कि वो महाराष्ट्र की पालघर सीट पर शिवसेना को मात देने में कामयाब रही। दोनों पार्टियों के लिए यह चुनाव साख का विषय था। इसलिए प्रचार के लिए बड़े-बड़े नेताओं को मैदान में उतरा गया। खुद मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस भी पालघर पर नज़रें जमाये हुए थे। उन्होंने एक तरह से यहाँ अपना कैंप ही लगा लिया था। राज्यमंत्री रवींद्र चव्हाण को पालघर चुनाव का प्रभारी बनाया गया था। जबकि विधायक मंगलप्रभात लोढ़ा, योगेश सागर,प्रवीण दरेकर, मनीषा चौधरी, संजय केलकर, नरेंद्र मेहता, पास्कल धनारे के नेतृत्व में अलग-अलग टीमें काम कर रही थीं। इतना ही नहीं, बोरीवली के सांसद गोपाल शेट्टी, भिवंडी के सांसद कपिल पाटील और आदिवासी विकास मंत्री विष्णु सावरा को भी विशेष जिम्मेदारियां दी गई थीं। पार्टी के दिग्गज नेता योगी आदित्यनाथ, स्मृति ईरानी ने भी डहाणु, मनवेल पाड़ा और विरार में जनसभाएं की। पालघर के आदिवासियों के बीच काम करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 15 से 20 प्रचारक और उनके स्वंयसेवकों की टीम ने समानांतर रूप से भाजपा के पक्ष में काम किया।

आख़िरकार पार्टी के प्रयास रंग लाये और भाजपा सीट अपने पाले में करने में कामयाब रही। भाजपा उम्मीदवार राजेंद्र गावित को यहाँ 2 लाख 63 हजार683 वोट प्राप्त हुए हैं, जबकि शिवसेना के श्रीनिवास वनगा को 2 लाख 37हजार 207 वोट ही मिल सके।

कहाँ हुई चूक?
अब सवाल यह उठता है कि आखिर शिवसेना से चूक कहाँ हुई या भाजपा ने ऐसा क्या किया कि पालघर के मतदाताओं ने उसके सिर जीत का ताज पहना दिया? पालघर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से डहाणू, पालघर, बोइसर, नालासोपारा और वसई में बड़ी संख्या में हिंदी भाषी मतदाता हैं। भाजपा ने अपने चुनावी अभियान में इन मतदाताओं पर फोकस किया। इन 6 विधानसभा सीटों में से दो पर भाजपा, एक पर शिवसेना और तीन पर बहुजन विकास आघाडी के विधायक हैं। इस हिसाब से देखा जाए, तो बहुजन विकास आघाडी की ताकत ज्यादा थी, लेकिन उसकी ताकत काम नहीं आ सकी। पालघर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आनेवाले कई विधानसभा क्षेत्र पहले उत्तर मुंबई लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा रहे हैं और इस सीट से पहले भाजपा के राम नाईक पांच बार चुनाव जीते हैं। फ़िलहाल राम नाईक उत्तरप्रदेश के राज्यपाल हैं।

ये है नुकसान की वजह  
कुल मतदाताओं की बात करें तो इस लोकसभा क्षेत्र में उनकी संख्या 15-16 लाख के करीब है। इनमें से करीब 25 फीसदी मतदाता हिंदी भाषी हैं, जो उत्तरप्रदेश, बिहार और राजस्थान से आते हैं। इसके अलावा यहाँ गुजराती भी अच्छी तादाद में हैं। भाजपा ने इस वोटबैंक को टारगेट पर रखा और उसी के मद्देनज़र अपनी चुनावी रणनीति को आकार दिया। शिवसेना भी पूर्व में मनसे की तरह उत्तर भारतीयों के खिलाफ अभियान चलाती रही है, और मौजूदा वक़्त में भी उसके नेता समय-समय पर यह दर्शाते रहे हैं कि ‘बाहरी’ का विषय उनके लिए अभी भी मौजूद है। इसलिए भाजपा यहाँ पहले से ही शिवसेना से एक कदम आगे थी। मुख्यमंत्री फड़नवीस और भाजपा आलाकमान ने बहुत सोचा विचार के प्रचार में ऐसे नेताओं को उतारा जो उन हिंदी भाषियों के विश्वास के साथ-साथ वोट भी हासिल कर सकें। पार्टी ने उत्तर भारतीयों में लोकप्रिय मुंबई भाजपा के महामंत्री अमरजीत मिश्र को विशेष जिम्मेदारी दी और योगी आदित्यनाथ को भी प्रचार के लिए बुलाया। नालासोपारा विरार में भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता और दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी का रोड शो हुआ।

…तो बात कुछ और होती
भाजपा उत्तरभारतीय मतदाताओं को यह समझाने में सफल रही कि उनके हितों का वही ख्याल रख सकती है, जबकि शिवसेना के लिए ‘बाहरी’ का मुद्दा नकारात्मक साबित हुआ। यदि दोनों दल गठबंधन के तहत चुनाव में उतारते तो संभव था कि शिवसेना के श्रीनिवास वनगा बाकी पार्टियों को परास्त करने में सफल रहते, क्योंकि भाजपा की प्रत्यक्ष अनुपस्थिति में शिवसेना उसका प्रतिनिधत्व करती। और कांग्रेस या अन्य दलों की तरफ मतदाताओं के रुझान की उम्मीद का ही थी।