पुणे पुलिस को खानी पड़ी मुंह की, सात दिनों का मिला हाउस अरेस्ट

पुणे समाचार ऑनलाइन

पुणे पुलिस ने पुख्ता सबूत के तौर पर माओवादियों से संबंध होने के शक पर देश के विभिन्न 9 स्थानों से 5 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन इस पूरे मामले में पुणे पुलिस को मुंह की खानी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार गिरफ्तार किए गए पांचों को हाउस अरेस्ट का आदेश दिया गया। इससे साफ जाहिर होता है कि पुणे पुलिस इस मामले में जांच करने में कहीं न कहीं कम पड़ी है या उनको जांच को लेकर होमवर्क कम पड़ा है। अगर पुणे पुलिस के पास पुख्ता सबूत थे, तो कोर्ट में इस केस को चैलेंज करने में पुलिस के पास ठोस जवाब नहीं था। पुणे पुलिस के सरकारी वकील द्वारा शिवाजीनगर कोर्ट में भले ही बड़ी बड़ी दलीलें दी गई हो, पर यह दलीलें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के सामने फीकी नजर आयी।

पुणे पुलिस ने वारावर राव (हैदराबाद), गौतम नवलाखा (दिल्ली), सुधा भारद्वाज (फरिदाबाद) व वर्नोन गोन्साल्विस (मुंबई) और अरूण फरेरा (ठाणे) को गिरफ्तार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पांचों को हाउस अरेस्ट का आदेश दिया। जबकि पुणे पुलिस की तरफ से इस केस को लड़ रहे सरकारी वकील उज्जवला पवार ने 14 दिन की पुलिस कस्टडी की मांग की थी। पर उससे पहले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाउस अरेस्ट के आदेश ने पुलिस पुलिस की जांच में की गई सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। पुणे पुलिस ने कोर्ट में पुख्ता सबूत के रूप में कुछ पत्र पेश किए गए थे, जिसमें पांचों को जम्मू कश्मीर हिंसा के लिए मास्टरमाइंड कहा गया था। देश के विभिन्न स्थानों में हिंसा फैलाने के लिए संदिग्ध बताया गया। साथ ही यह भी दोष लगाया कि देश के जिस हिस्से में फोर्स कम है वहां बड़ा धमका करने की साजिश थी। सरकार के खिलाफ यह षडयंत्र रचने का आरोप लगाया गया।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कोर्ट में पेश किए गए अरूण फरेरा (ठाणे), वर्नोन गोन्साल्विस (मुंबई) और वारावर राव (हैदराबाद) को वापस उनके घर पर पुणे पुलिस छोड़कर आएगी और सात दिनों तक उनके घर में नजरबंद रखेगी। कोर्ट में पक्षकार वकील ने सरकारी वकील द्वारा दी गई सारी दलीलें को झूठा ठहराया। एड. रोहन नाहर ने कोर्ट में कहा कि इन पर लगाए गए संघिन्न आरोप पूरी तरह से गलत हैं। भीमा कोरेगांव में जो हिंसा हुई इन सभी के सिर पर मड़ा जा रहा है, जबकि इस तरह का आरोप लगाना पूरी तरह से गलत है। इनमें से एक भी भीमा कोरेगांव हिंसा के दौरान मौजूद नहीं था और न ही किसी तरह के हथियार इनके द्वारा उपलब्ध कराए गए थे। भीमा कोरेगांव की हिंसा दो गुटों की बीच हुई थी। इस हिंसा में दलित समाज और मराठा समाज के बीच हिंसा हुई थी। इस हिंसा को इन तीनों से जोड़ना पूरी तरह से गलत है। नेपाल से हथियार खरीदे जाने की बात पर भी किसी तरह का कोई तथ्य नहीं है।

कोर्ट में काफी लंबा युक्तिवाद चलने के बाद डेढ़ घंटे बाद हाउस अरेस्ट का फरमान सुनाया गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार तीनों को वापस उनके घर में हाउस अरेस्ट की रवानगी के लिए आदेश दिए गए। पुणे पुलिस एक बार फिर से अपनी जांच में कहीं न कहीं असफल नजर आ रही है। पुलिस के पास कोर्ट के समक्ष अपनी उचित बात को पेश करने का मौका मिलने के बाद भी मुंह की खानी पड़ी। जिस आधार पर पांचों को गिरफ्तार किया गया, वही सबूत फीके पड़ते नजर आए।