‘ज्योत’ की पहल–शिखरजी बचाओ

पुणे। समाचार ऑनलाइन –“सेव शिखरजी” (शिखरजी बचाओ) सबसे पावन जैन तीर्थ ‘शिखरजी’, जो पारसनाथ पर्वत के नाम से भी जाना जाता है, की पवित्रता रखने के लिए जैनियों का संयुक्त प्रयास है। इस अभियान को ‘ज्योत’ नामक लाभ-निरपेक्ष संगठन ने आयोजित किया है जो जैनाचार्य श्रीमद विजय युगभूषण सूरीजी (पंडित महाराज) के मंगल मार्गदर्शन में संचालित हो रहा है।

एक महीने पहले शुरू हुआ यह आन्दोलन पूरे विश्व में समस्त जैन समुदाय को जाग्रत कर चुका है। उनके समर्थन पत्र अमेरिका, केनेडा और न्यूजीलैंड के संगठनों से लगातार मिल रहे हैं और यह तब तक जारी रहेगा जब तक कि सरकार आधिकारिक तौर पर सम्पूर्ण पर्वत को “उपासना स्थल” घोषित नहीं कर देती। दुनिया भर में विस्तृत जैन समुदाय के लोग इस लक्ष्य के प्रति एकजुट हुए हैं, क्यों कि जैन धर्म के सभी चार पंथों – श्वेताम्बर, दिगंबर, तेरापंथी और स्थानकवासी – के प्रमुख संत एकजुट हैं।

शिखरजी गिरीराज २० तीर्थंकरों की निर्वाण भूमि होने के कारण  जैनों का पूजा स्थल और आस्था का शीर्ष प्रत‌ीक है। अन्य अनगिनत म‌ुनियों- महंतों ने पहाड पर साधना करके मोक्ष प्राप्त किया है। उनकी विशुद्ध आत्माओं और उनकी अतुलनीय संकल्प- शक्तिओं से इस पावन पहाड़ी के कण कण में आध्यात्मिक स्पंदन प्रवाहित हुआ है। अतः केवल मंदिर क्षेत्र ही नहीं संपूर्ण पहाड और उसका कण-कण पवित्र एवं पूजनीय है। अब ऐसी पवित्र भूमि का पुनः निर्माण असंभव है।

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इस अभियान के विषय में आचार्य जी ने कहा कि, समृद्ध धर्म और सांस्कृतिक धरोहर ही भारत को बाकी संसार से अलग करती हैं। शिखरजी जैसे महातीर्थ धार्मिक रूप से भारत की आध्यात्मिक संपदा का प्रतीक हैं। ऐसे स्थलों की शुद्धता को बाधित करना हमारे राष्ट्र के गौरव के साथ खिलवाड़ करने से कम नहीं है।आज पारसनाथ पर्वत के क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के सरकारी इरादे के कारण शिखरजी की पवित्रता नष्ट होने का ख़तरा विद्यमान है। मदिरा, मांस और दूसरे अवगुण को पर्यटन के साथ पहुँचते ही, इस तीर्थस्थल की पवित्रता नष्ट कर देंगे और जैनियों की आस्था तथा मान्यताओं पर चोट करेंगे।

सभी जानते हैं कि जैन अनुयायी शिखरजी की यात्रा नंगे पैर करते हैं और इसकी पवित्रता बहाल रखने के लिए पर्वत पर भोजन और जल ग्रहण का त्याग करते है। जैन धर्म मूल रूप से धार्मिक संपदा के व्यवसायीकरण और मनोरंजक उपयोग से मना करता है। सरकार के इन जैन विरोधी मंसूबों का विरोध करने के लिए जैन प्रतिनिधि मंडल समय समय पर झारखंड के मुख्यमंत्री से मिले हैं। हर बार उन्होंने आश्वासन भी दिये। जब तब उन्होंने वादे ‌किये ,जो आज तक पूरे नहीं किये गये हैं। वादों के बावजूद सरकार ने अन्य धर्म का मंदिर वहां निर्माण करने की योजना घोषित की है जिससे पहाड़ी का नाम तक बदल जाने की जैनों को आशंका हैं।

सरकार ने शिखरजी पर है‌लिपैड भी बनाया है। कहा तो गया कि सुरक्षा के मकसद से वह निर्माण किया गया है पर अधिकृत रुप से वह ऐसा मान्य करने के लिए तैयार नहीं जिससे यह डर बना हुआ है कि वह पर्यटन के लिए इस्तेमाल होगा। इसके चलते ‘सेव शिखरजी’अभियान द्वारा आन्दोलन आरम्भ किया गया है जिसका उद्देश्य जैन समुदाय का क्षोभ व्यक्त करना और भारत के प्रधान मन्त्री तथा झारखण्ड में मुख्य मंत्री तक अपनी चिंता पहुंचानी है |

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हेमंत एम. शाह, जन संपर्क निर्देशक ने कहा कि, “जैन समुदाय ने अभूतपूर्व एकता प्रदर्शित की है और महज मौखिक वादे से संतुष्ट नहीं होने बल्कि अंतिम लक्ष्य हासिल होने तक आन्दोलन की राह पर आगे बढ़ने का संकल्प लिया हैI वर्तमान और भविष्य के खतरों का विचार करते हुए, ‘सेव शिखरजी’ अभियान अंतिम रूप से सरकार से अपील करता है कि सम्पूर्ण पर्वत को जैनियों के लिए ‘उपासना स्थल’ के रूप में आधिकारिक तौर पर घोषित किया जाएI यह बताना जरूरी है कि मुसलमानों के दिलों में मक्का मदीना की जो जगह है, हिंदूओं के मन में जैसा अयोध्या का स्थान है, सिखों के दिल में स्वर्णमंदिर के ‌लिए जो ज़ज्बा है, वैसी भावनाएं शिखरजी के लिए जैनों के दिल में हैं।

भारत में  अनगिनत  तालाब, नदियां, गुफा और पहाड़ी है जैसे तिरूमला पहाड़ी, सिक्कीम में नरसिंह पर्वत, उडिशा में नियमगिरी आदि, जिन्हें पवित्र पूजा स्थल के तौर पर अधिकृत स्वीकृति दी गई है। विश्व के अतिविकसित देशो में भी पहाड़ो, चट्टानों को पावन माना जाता है, जैसे अमेरिका में ग्रांड कैनन, आस्ट्रेलिया में उलुरु रेड रॉक। उन क्षेत्रों को वहां की सरकारों ने न केवल कानूनी संरक्षण दिया है बल्कि उनके जतन एवं संवरण के लिए नीति- नियम भी बनाये हैं। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि जैनों को यह मांग करने का पूरा हक है और  वह पूरी करना सरकार के अधिकार में है।

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हाल में झारखंड के मुख्यमंत्री के इन मौखिक आश्वासनों को कि शिखरजी पर कोई अन्य मंदिर नहीं बनाया जायेगा .. कि उसकी पवित्रता पर आंच आने नहीं दी जायेगी.. खरा मानकर समाज के कुछ हिस्से ने सफलता का जश्न मनाया। पर इन मौखिक आश्वासनों को हमारे ध्येय-शिखरजी बचाओ के आड़े आने नहीं दिया जायेगा। आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक हमारा ध्येय पूरा नहीं होता। जैन समाज से हम अनुरोध करते हैं कि वे किसी तरह के संदेशो से गुमराह ना हो।

यह अभियान स्पष्ट करता है कि अन्य आस्था के समुदाय के लिए मंदिर बनाये जाने की सरकार की महान पहल पर जैनों को कतई आपत्ति नहीं है, आपत्ति दूसरे धर्मस्थल के दायरे में वह बनाने पर है।  साथ ही सरकार को अपना इरादा बदलते हुए पर्यटन को बढ़ावा देने के बदले इस क्षेत्र को पूर्व घोषित जैन दर्शन पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक ज्ञान केंद्र के रूप में विकसित करना चाहिए |

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वर्तमान अभियान को चहुं ओर से जबर्दस्त प्रतिसाद मिला है, मिल रहा है, शिखरजी बचाओं पिटीशन पर 4 लाख से ज्यादा लोग हस्ताक्षर कर चुके हैं। मुंबई, पुणे, विजापुर आदि जगहों पर जन रैलियां संपन्न हुई, महिलाओं द्वारा निकाले गये विरोधी मोर्चों को जनता से अच्छा समर्थन प्राप्त हुआ है। हमें उम्मीद है कि जैन समाज की तीव्र भावनाओं को संज्ञान में लेकर सरकार इस मसले पर संवेदनशीलता का परिचय देगी और जैनों के साथ समुचित न्याय करेगी।