काम से गैरहाज़िर रहने का दूसरा सबसे आम कारण है आईबीएस

एचसीएफआई के सर्वेक्षण में हुआ खुलासा

पुणे: पुणे समाचार ऑनलाइन

एक प्रमुख नेशनल हेल्थ एनजीओ, हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) द्वारा किये गये एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि लगभग5-10 प्रतिशत सामान्य आबादी में पेट में दर्द, डायरिया, कैंज आदि जैसे इरिटेबल बॉवल सिंड्रोम (आईबीएस) के लक्षण मौजूद होते हैं। यह कार्य से अनुपस्थित रहने का दूसरा सबसे आम कारण है, साथ ही जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव भी डालता है। इसके बावजूद अधिकांश लोग इलाज को लेकर उदासीन हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य चिकित्सक और रोगी के दृष्टिकोण से आईबीएस का विश्‍लेषण करना था, ताकि रोजमर्रा के जीवन पर इसके प्रभाव और उपचार के विकल्पों को जाना जा सके। यह जानना दिलचस्प होगा कि हालांकि 84.6 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना था कि पेट के दर्द या आईबीएस के अन्य लक्षणों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन इनमें से 58 प्रतिशत राहत के लिए बाजार से दवा ले लेतेहैं और डॉक्टर को नहीं दिखाते हैं।

सर एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल, मुंबई के डॉ. चेतन भट्ट ने कहा, ‘वर्तमान में, कई चुनौतियां ऐसी हैं जिनके चलते आईबीएस की पहचान करने और इसके इलाज में समस्या आती है। इनमें से कुछ हैं- बायो मार्करों की कमी, रोग की पहचान करने में रोगियों के लक्षणों पर निर्भरता, लक्षणों को ठीक-ठीक मापने में कठिनाई, मरीजों में अलग-अलग लक्षण, और कई जैविक स्थितियां जो आईबीएस के रूप में सामने आ सकती हैं।’

सर्दी-जुकाम के बाद दूसराआईबीएस का सबसे सामान्य लक्षण है

मलत्याग की आदतों में परिवर्तन के साथ पेट में दर्द। कुछ लोगों का कहना है कि कि भावनात्मक तनाव और खाने में गड़बड़ी से दर्द बढ़ सकता है, और मलत्याग करने से दर्द में राहत मिलती है। इस बारे में पी डी हिंदुजा हॉस्पिटल, मुंबई के डॉ. फिलिप अब्राहम ने कहा, ‘आईबीएस पाचन तंत्र की एक पुरानी आम कंडीशन है और काम से अनुपस्थिति के कारणों में सर्दी-जुकाम के बाद इसका दूसरा स्थान है। इस कंडीशन की शुरुआत अक्सर किशोरावस्था में होती है और पुरुषों की तुलना में यह महिलाओं में अधिक होती है। पिपरमिंट ऑयल इस कंडीशन के लिए एक सुरक्षित उपचार विकल्प के रूप में उभरा है।’

जागरुकता बढ़ाना महत्वपूर्ण

आईबीएस के उपचार के तरीकों पर चिकित्सकों के बीच हुए सर्वेक्षण के परिणामों से पता चलता है कि लगभग 55.9 प्रतिशत डॉक्टर आईबीएस के उपचार में मल्टी-ड्रग एप्रोच अपनाते हैं, 54.5 प्रतिशत डॉक्टर एंटीस्पेज्मोडिक्स लिखते हैं, और 30.8 प्रतिशत से अधिक डॉक्टर एंटीबायोटिक दवाएं, एंटीस्पेज्मोडिक्स तथा पिपरमिंट ऑयल लेने की सलाह देते हैं। जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता के बारे में बोलते हुए,एचसीएफआई के प्रेसीडेंट, डॉ. के के अग्रवाल ने कहा, ‘हरेक को एक साधारण मंत्र तो यह याद रखना चाहिए कि अगर पेट में दर्द नहीं है, तो यह आईबीएस नहीं हो सकता। रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है।’

सर्वेक्षण से प्राप्त कुछ दिलचस्प तथ्य इस प्रकार हैं

•  84.6 प्रतिशत ने कहा कि पेट में दर्द और मलत्याग की आदतों में परिवर्तन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
•   58.3 प्रतिशत लोग ओवर-द-काउंटर दवाएं लेकर खुद ही उपचार कर लेते हैं
• 33.3 प्रतिशत का मानना है कि यह हालत इतनी गंभीर नहीं कि वे डॉक्टर के पास जायें
•  8.3 प्रतिशत कोई भी इलाज नहीं लेना चाहते हैं
•  46 प्रतिशत का कहना है कि आईबीएस दैनिक कार्यों में बाधक है