बड़ी मुश्किल से पहचान हो सकी है। “छतीसगढ़ के इस इलाके में रात के वक़्त सुरक्षाबलो के सफर पर भी पाबंदी रहती है,इसलिए नेमचंद ने खुली आँखों से ही पौ फटने का इंतजार किया और चार बजे जबलपुर,आगरा और दौसा होते हुए 24 घंटे बाद घर पहुँचे। उसी रात अलवर जिले के बहड़को गांव में रहने वाले राजस्थान पुलिस के हेड -कांस्टेबल बाबूलाल मीणा के घर भी अलवाल के एक निजी अस्पताल से फोन आया, “आपका बेटा ऋतुराज गंभीर हालत में है, जल्दी पहुँचो।”बाबूलाल मीणा फोन रख, पत्नी के साथ घर से निकले ही थे कि अलवर के ही पुलिस थाने से फोन आया और उन्हें वहाँ पहुंचने के लिए कहा गया। इसी तरह के फोन दो और युवकों, मनोज मीणा और अभिषेक मीणा, के घर भी गए। अगले डेढ़ घंटे बाद सत्यनारायण, ऋतूराज और मनोज मीणा के घर वाले उनके शवों के किनारे खड़े दहाड़ें मार रो रहे थे और अभिषेक के घर वाले, पुलिस के साथ, एक एम्बुलेंस में गंभीर रूप से घायल इस युवक को लेकर राजधानी जयपुर के रास्ते में थे।