क्या दिया पुणे ने पवार को?

शरद पवार का अफ़सोस भरा सवाल 
पुणे। संवाददाता – इतिहास के अध्ययनकर्ता मंदार लवाटे द्वारा ली गई पुणे की पुराणी तस्वीरों की कॉफी टेबल बुक ‘पुणे एकेकाळी’ का विमोचन राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार और सिक्किम के भूतपूर्व राजयपाल श्रीनिवास पाटिल के हाथों रविवार को किया गया। इस मौके पर ‘पुरानी यादों का पुणे’ विषय पर मशहूर साक्षात्कारकर्ता सुधीर गाडगील ने दोनों के साक्षात्कार लिए। इसमें शरद पवार ने एक सवाल के जवाब में कहा कि, पुणे में एसपी कॉलेज समेत कई इमारतों का निर्माण नरहर गणपत पवार ने किया। मगर पुणे ने ‘पवार’ को क्या दिया? असल में इस कॉफी टेबल बुक में कई महत्वपूर्ण इमारतों की तस्वीरों और उनकी जानकारी का समावेश है। इसी का उल्लेख अपने मनोगत में करते हुए शरद पवार ने उक्त अफ़सोस भरा सवाल उठाया।
पवार ने कहा, प्रभात टॉकिज, विजयानंद टॉकिज, गोखले हॉल, काँग्रेस भवन, एसएसपीएमएस कॉलेज, वानवडी में शिंदे पॅलेस, डेक्कन जिमखाना परिसर के कई बंगलों का निर्माण नरहर पवार ने किया है। सेवासदन में पढ़नेवाली लड़कियों की शिक्षा के लिए भी उन्होंने अगुवाई की। ग्रामीण इलाकों से आनेवाले विद्यार्थियों के लिए क्वार्टर्स बनाये। इतनी इमारतों का निर्माण पवार ने किया लेकिन पुणे ने उनपर कभी मेहरबानी नहीं दिखाई। यह अफ़सोस जताने के साथ ही शरद पवार ने इस कार्यक्रम में श्रीनिवास पाटिल की राजनीति में ‘एन्ट्री’ का किस्सा भी खोलकर रख दिया। कॉलेज में ही पवार और पाटिल ने राजनीति में जाने का निश्चय किया था। 26वीं आयु में पवार को मौका मिला और वे विधानसभा में चुने गए। मगर तब श्रीनिवास पाटिल ने अलग रास्ता चुना। यही किस्सा पवार ने इस कार्यक्रम में सबके सामने बताया।
ऐसे हुई श्रीनिवास पाटिल की राजनीति में ‘एंट्री’
श्रीनिवास पाटिल के राजनीति में प्रवेश का किस्सा बताते हुए पवार ने कहा कि, पाटिल मूल कराड़ के निवासी हैं। तब यशवंतराव चव्हाण, य़शवंतराव मोहीते, आनंदराव चव्हाण जैसे बड़े नेता कराड़ में थे। उनके रहते राजीनीति में अवसर मिलना मुमकिन नहीं, ऐसा पाटिल ने बताया। इसके चलते उन्होंने एमपीएससी की परिक्षा देकर अधिकारी बनने का तय किया। हालांकि तब मैंने उनसे जिस दिन भी कहूंगा उसी दिन इस्तीफा देने का वचन लिया। बाद में पाटिल जिलाधिकारी बने, सचिव भी बने। जब मैंने अलग पार्टी का गठन किया और हमारी पार्टी के पास प्रत्याशी नहीं था तब मैंने श्रीनिवास पाटिल को मुंबई बुलवाया। मुंबई आने के बाद उन्हें सीधे मंत्रालय जाकर इस्तीफा देने को कहा। पाटिल ने भी इस्तीफा दे दिया और कराड़ में जाकर लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन परचा भरा और साढ़े तीन लाख वोटों से जीत भी दर्ज की।