बैंक घोटालों में बैंक के साथ ही समानांतर क्षेत्र भी उतने ही जिम्मेदार – डॉ. संतोष दास्ताने

इंद्रायणी महाविद्यालय में बैंकिंग पर व्याख्यान माला का समापन

पिंपरी। पुणे समाचार ऑनलाइन

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक घोटालों में बैंक के साथ ही समानांतर क्षेत्र भी बराबर के जिम्मेदार है. बैंक वित्त आपूर्ति का एक साधन है. लेकिन, दिए गए कर्ज का उत्पादन क्षेत्र में पर्याप्त व योग्य इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसलिए फिलहाल सार्वजनिक क्षेत्र में बैंक घोटाले होते है. यह प्रतिपादन प्रसिद्ध लेखक, संशोधक व आर्थिक सलाहकार डॉ. संतोष दास्ताने ने यहां किया.

इंद्रायणी महाविद्यालय के स्वर्णमहोत्सव वर्ष के निमित्त आयोजित शिक्षक प्रबोधिनी व अर्थशास्त्र विभाग की ओर से आयोजित किए गए बैंकिंग विषय के लिए अल्पावधि प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम के तीन दिवसीय व्याख्यान माला का के समापन अवसर पर डॉ. दास्ताने बोल रहे थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. डी.डी. बालसराफ ने की. इस समय उपप्राचार्य डॉ. एस.के. मलघे, प्रा. के. वी. अडसूल, डॉ. अर्चना जाधव, डॉ. एस.के. सानप, डॉ. एस.एस. मेंगाल, प्रा. एम.वी. खांदवे, डॉ. बी.के. रसाल, प्रा. डी.बी. पेठे, प्रा. एम.वी. देशमुख, प्रा. सुरेश थरकुडे, प्रा. श्रद्धा गुजराती, प्रा. डी.पी. काकडे आदि उपस्थित थे.

डॉ. दास्ताने ने आगे कहा कि, पंजाब नेशनल बैंक में घोटाले का पर्दाफाश हुआ है. इसके अलावा अन्य बैंकों में भी घोटाले हुए है. बैंक कर्ज देने का साधन है, साथ ही बैंकों ने बड़ी मात्रा में कॉर्पोरेट क्षेत्र में भी कर्ज दिया है. कॉर्पोरेट क्षेत्र में 1991 के बाद के आर्थिक उदारीकरण, निजी करण व वैश्विकरण के कारण तीव्र स्पर्धा निर्माण हुई है. कॉर्पोरेट क्षेत्रों की ओर से इन स्पर्धाओं को प्रोत्साहन देने के लिए बैंकों से बड़े पैमाने पर कर्ज के रूप में पूंजी दी जाती है. कर्ज प्राप्त करने के लिए कंपनियां खुद को काफी बढ़ा-चढ़ा कर दिखाती है. इस कारण बैंक उन्हें बड़े पैमाने पर कर्ज देती है. लेकिन बैंक इन कंपनियों की वास्तविक स्थिति की जांच करने की जहमत नहीं उठाती. इस कारण संबंधित उद्योग की क्षमता कम होने के बावजूद उन्हें बड़ा कर्ज दिया जाता है. कॉर्पोरेट क्षेत्र से कर्ज का भुगतान न होने के कारण आखिरकार बैंकों को समभाग देने का विकल्प रखा जाता है. कालांतर में इस समभाग की कीमत भी कम हो जाती है और बैंकों को काफी नुकसान सहना पड़ता है. कॉर्पोरेट क्षेत्रों को चाहिए कि जिस उत्पादन के लिए वे कर्ज ले रहे है, क्या उस उत्पादन की मांग बाजार में है. है, तो कितनी मांग है, क्या उससे कर्ज चुकाया जा सकता है. लेकिन इसके विपरित उत्पादन और मांग के बीच का अनुपात बिगड़ने से उद्योजकों को नुकसान होता है और वे कर्ज की राशि का भुगतान नहीं करते. इस कारण बैंकों को भी नुकसान होता है. दूसरी ओर से सूक्ष्म उद्योग, महिला उद्योग, बचतगटों की ओर से मात्र 95 से 98 प्रतिशत ही कर्ज चुकाया जाता है. बड़े उद्योग स्वेच्छा से स्वयं को डिफॉल्टर घोषित कर देते है. उनकी कर्ज चुकाने की क्षमता होने के बाद भी वे जानबूझ कर कर्ज का भुगतान नहीं करते.

उन्होंने आगे कहा कि कर्ज देते समय प्रकल्प की 150 प्रतिशत गिरवी सम्पत्ति होनी चाहिए. लेकिन आज कर्ज देते समय का सिद्धांत बदल गया है. आज कर्ज देते समय गिरवी संपत्ति की क्षमता नहीं, बल्कि कारण देखा जाता है. बकाया कर्ज न चुकाने के पीछे कहीं न कहीं सरकार का समर्थन भी मिला होता है. रिजर्व बैंक की स्वायत्तता कम हो रही है. पिछले कुछ समय से सरकार रिजर्व बैंक की नीतियों में हस्तक्षेप कर रही हैं. बैंक रेट, सीआरआर, एसएलआर का प्रमाण कम करने के लिए सरकार दबाव बना रही है.

डॉ. दास्ताने ने कहा कि निरव मोदी के मामले में रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने सरकार को पूर्वसूचना दी थी. लेकिन सरकार ने इस विषय में जानबूझ कर ध्यान नहीं दिया. इसी कारण पंजाब नेशनल बैंक में बड़ा घोटाला हुआ. प्राचार्य डॉ. डी.डी. बालसराफ, के.वी. अडसूल ने मनोगत व्यक्त किया. कार्यक्रम का प्रास्ताविक डॉ. अर्चना जाधव ने और  प्रा. अडसूल ने आभार व्यक्त किया.