प्रदूषित दिल्ली में विकास के नाम पर कुर्बान होंगे 14 हज़ार पेड़, विरोध शुरू

नई दिल्ली: विकास के नाम पर पेड़ों की कुर्बानी आम है, अब दिल्ली में करीब 14 हजार पेड़ काटे जाने हैं, जबकि गुपचुप सैंकड़ों पेड़ पहले ही काटे जा चुके हैं। दिल्लीवासियों को जैसे ही सरकार की इस योजना का पता चला, वो सड़कों पर उतर आये। यह मामला अब कोर्ट में है और पेड़ों की जिंदगी का फैसला अदालत सोमवार को करेगी। इस बीच, इस मुद्दे को लेकर रजनीति भी शुरू हो गई है। केंद्र सरकार ने जहाँ इसे राज्य का फैसला बताया है, वहीं राज्य सरकार इसे केंद्र के पाले में डाल रही है। पेड़ काटे जाने के खिलाफ आम आदमी पार्टी (आप) ने ‘चिपको आंदोलन’ जैसे आंदोलन की चेतावनी दी है। आप नेता सौरभ भारद्वाज ने दिल्ली वासियों से अपील करते हुए कहा है कि पेड़ काटे जाने के केंद्र की मोदी सरकार के फैसले के खिलाफ आज शाम पांच बजे सरोजनी नगर पुलिस स्टेशन के बाहर इकट्ठा हों और विरोध दर्ज कराएं।

उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर आम आदमी पार्टी एक भी पेड़ नहीं कटने देगी। यदि पेड़ काटना ही आखिरी रास्ता है तो फिर मोदीजी यह पुनर्निर्माण प्रोजेक्ट कहीं और ले जाएं। सौरभ ने कहा कि दिल्ली का फेफड़ा पेड़ है अगर इसे ही काट दिया गया तो दिल्ली की सांसें रुक जाएगी।

क्या है चिपको आंदोलन?
आपको बता दें कि चिपको आन्दोलन उत्तराखंड के चमोली जिले में किसानो ने पेड़ों की कटाई के विरोध में शुरू किया था। साल 1973 का यह आंदोलन पूरे उत्तराखंड में फैल गया था। जिसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में पेड़ों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी थी।

क्यों काटे जाएंगे पेड़?
दरअसल, केंद्र सरकार ने सरकारी अधिकारियों और नेताओं के लिए आवास बनाने की योजना बनाई है, इसे पुनर्निर्माण नाम दिया गया है। दक्षिण दिल्ली के सात स्थानों पर पुनर्निर्माण के प्रोजेक्ट के लिए पेड़ काटे जाएंगे। जिसमें दक्षिण दिल्ली का सरोजनी नगर, नेताजी नगर, नैरोजी नगर, कस्तूरबा नगर, मुहम्मदपुर, श्रीनिवासपुरी और त्यागराज नगर शामिल है।