पुणे। पुणे समाचार एजेंसी
दूध उत्पादन में अग्रणी समझे जानेवाले महाराष्ट्र के दूध उत्पादकों पर गहरा संकट छाया हुआ है। जिस दूध को वे बेचकर वे अपनी आजीविका चलाते हैं वह अब पानी से ज्यादा सस्ता हो गया है। जहां कोल्हापुर में कुछ किसान गाय के दूध का दाम 23 रुपये प्रति लीटर पा रहे हैं लेकिन ज्यादातर को 17 से 19 रुपये से ही संतोष करना पड़ रहा है। इसके विपरीत बोतलबंद पानी 20 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिक रहा है। यानी दूध पानी से भी सस्ता हो गया है, इससे दूध उत्पादकों की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा है।
दूध की बिक्री 17 से 20 रुपए प्रति लिटर से हो रही है, इसके विपरीत जब यही दूध शहर में उपभोक्ताओं तक पहुंचता है तो उसकी कीमत 40 से 44 रुपये प्रति लीटर हो जाती है। हाँलाकि किसानों को उसका कोई फायदा नहीं मिलता है। दूध आधारित अर्थव्यवस्था जब बुरे हाल में गुजर रही है ऐसे में सड़क पर दूध को फेंकना विरोध का तरीका बन गया है। एक साल पहले तक किसानों को गाय के दूध की कीमत 27 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से मिलती थी लेकिन आठ महीने पहले दाम 4 से 10 रुपये कम हो गए।
दूध के दाम कम होने की वजह अत्यधिक दुग्ध उत्पादन और विदेशों में दूध के दाम में कमी रही। कई डेयरी ने इस सप्ताह में दूध के दाम में 2 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से कमी कर दी और कईयों ने तो गाय का दूध नहीं खरीदने का फैसला किया है जिससे संकट और गहरा गया है। अपनी 4 गायों से हर महीने 30 हजार रुपये कमाने वाले किसान को पत्नी के साथ खेतों में मजदूरी करने की नौबत आई है। उनके समक्ष परिवार के भरण-पोषण का सवाल खड़ा हुआ है। महाराष्ट्र के डेयरी किसान खरीद मूल्य में कमी और गायों को पालने में आनेवाले खर्च में तेजी के मकड़जाल में उलझ कर रह गए हैं।
महाराष्ट्र में हर दिन 115 लाख लीटर दूध इकट्ठा होता है। जून 2017 में किसानों की ऐतिहासिक हड़ताल के बाद राज्य सरकार ने खरीद मूल्य को 24 से बढ़ाकर 27 रुपये प्रति लीटर कर दिया था। मगर कुछ महीने के बाद ही दामों में कमी आ गई। नवंबर महीने से हर दिन राज्य के पास 22 लाख लीटर अतिरिक्त दूध रहता है। इसी बीच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दूध के पाउडर की कीमतों में 30 से 40 प्रतिशत की कमी आई है। इसकी वजह से डेयरी अपने मिल्क पाउडर के स्टॉक को बेच नहीं पा रहे हैं और उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस घाटे को पूरा करने के लिए राज्य की डेयरी महाराष्ट्र सरकार से समर्थन मूल्य औऱ निर्यात में 10 फीसदी छूट की मांग की जा रही है।