अयोध्या विवाद: क्या कानून बनाने की स्थिति में है मोदी सरकार?

नई दिल्‍ली | समाचार ऑनलाइन – अयोध्या विवाद पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी तक टाल दी है. अभी यह भी कहना है कि जनवरी में किस दिन से सुनवाई शुरू होगी और क्या जल्द कोई फैसला आ पाएगा? भाजपा उम्मीद कर रही थी कि चुनावी मौसम में यदि राम मंदिर के पक्ष में फैसला आता है, तो उसे इस साल के अंत तक होने वाले विधानसभा चुनावों में कुछ फायदा मिल सकता है. यही वजह है कि अब कानून लाकर राममंदिर के निर्माण का रास्ता साफ़ करने पर चर्चा शुरू हो गई है. हिंदूवादी संगठन इसके लिए माहौल बना रहे हैं, संघ प्रमुख भी कानून को लेकर अपनी इच्छा प्रकट कर चुके हैं. लेकिन क्या वास्तव में कानून बनाने की राह सरकार के लिए इतनी आसान है?

गौरतलब है कि 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण एक्ट के तहत विवादित स्थल और उसके आसपास की जमीन का अधिग्रहण कर लिया था. सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. जिसके बाद कोर्ट ने इस्माइल फारुखी जजमेंट में 1994 में तमाम दावेदारी वाले सूट यानी अर्जी को बहाल कर दिया था और केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया था कि वह फैसला आने तक ज़मीन की देखभाल करे, अदालत जिस पक्ष में फैसला सुनाये जमीन उसे दी जाएगी. जानकर मानते हैं कि सरकार को दोबारा कानून लाने से कोई रोक नहीं सकता, लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट में फिर से चुनौती दी जा सकती है.

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इस विवाद में मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी के मुताबिक, जब अयोध्या अधिग्रहण एक्ट 1993 लाया गया तब उसे कोर्ट में चुनौती दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी थी कि कानून लाकर सूट को खत्म करना गैर संवैधानिक है. लिहाजा अब जबकि मामला अदालत में चल रहा है, सरकार कानून नहीं ला सकती. यह न्यायिक प्रक्रिया में दखलअंदाजी के समान होगा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पहले से व्यवस्था दी है कि अदालत के किसी फैसले को खारिज करने के लिए सरकार या विधायिका कदम नहीं उठा सकती. वह सुपर कोर्ट की तरह काम नहीं कर सकती, हालांकि कानूनी प्रावधान में संशोधन कर सकती है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसआर सिंह भी कुछ ऐसा ही मानते हैं. उनके अनुसार, विधायिका सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी या खारिज करने के उद्देश्य से कानून में बदलाव नहीं कर सकती, वह केवल उस आधार में बदलाव कर सकती है जिसके तहत फैसले सुनाया गया है. चूंकि अयोध्या विवाद केस सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, ऐसे में उसमें किसी तरह का बदलाव अदालती प्रक्रिया में दखल की तरह होगा.

सीधे शब्दों में कहें तो सरकार मौजूदा स्थिति में आधिकारिक तौर पर दखल नहीं दे सकती. इतना ज़रूर है कि यदि पक्षकार चाहें तो मिलबैठकर कोई समझौता ज़रूर कर सकते हैं. लिहाजा, राममंदिर के नाम पर वोटबैंक की राजनीति करने वालों को सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक इंतजार करना ही होगा.