ब्रिजेश कुमार की मौत पर अब अदालत पूछेगी रेलवे से सवाल

पुणेसमाचार विशेष

नीरज नैयर
पुणे : रेल कर्मचारी ब्रिजेश कुमार की मौत के मामले पर अब मध्य रेलवे के पुणे डिवीज़न को अदालत में जवाब देना होगा। पीड़ित परिवार ने न्याय के लिए अदालत का दरवाज़ा खटखटाने का मन बना लिया है। इस संबंध में पीड़ित पक्ष के वकील ने मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) और सीनियर सेक्शन इंजीनियर को क़ानूनी नोटिस भेजा है। आपको बता दें कि पिछले साल अप्रैल में ब्रिजेश कुमार कुमार की मौत हो गई थी। आरोपों के मुताबिक ट्रेनिग पर आए ब्रिजेश से डीआरएम के बंगले की चाकरी करवाई जाती थी।

मूलरूप से बिहार निवासी ब्रिजेश ट्रैक मैन की ट्रेनिंग के लिए पुणे आया था। लेकिन ट्रेनिंग के अलावा उससे दूसरे काम ज्यादा करवाए जाते थे, मृतक ने अपने परिजनों से कई बार इसका जिक्र भी किया था। ब्रिजेश की प्रताड़ना का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि वो नौकरी छोड़ने का मन भी बना चुका था, मगर पारिवारिक मज़बूरियों के चलते ऐसा नहीं कर सका।

खाना भी नहीं मिला था
पीड़ित पक्ष के अनुसार, 29 मार्च को ब्रिजेश सहित कुछ कर्मचारियों को संगम पार्क स्थित डीआरएम आवास लाया गया। यहां उनसे मोटी-मोटी लकड़ियों को दीवार के दूसरी तरफ फेंकने आदि काम करवाए जा रहे थे,तभी ब्रिजेश की तबीयत ख़राब हो गई. साथी कर्मचारी उसे रेलवे अस्पताल लेकर गए, जहां से दवाइयां देकर उसे वापस काम पर भेज दिया गया। हालांकि ब्रिजेश की तबीयत सुधरने के बजाए बिगड़ती गई और उसने 13 अप्रैल को हड़पसर स्थित नोबल अस्पताल में दम तोड़ दिया। ब्रिजेश के एक सहकर्मी ने उस वक़्त बताया था कि उन्हें ट्रेनिंग के तुरंत बाद काम पर लगा दिया गया था, ब्रिजेश को तो खाना खाने का समय भी नहीं मिला था।

नौकरों की तरह करवाते हैं काम
सूत्र बताते हैं कि ट्रेनिंग पर आने वालों को सीमेंट के बोरे ढोने से लेकर हर तरह से छोटे-बड़े काम करवाए जाते हैं, अधिकांश कर्मचारी ख़ामोशी से इसके लिए तैयार भी हो जाते हैं, क्योंकि वे अपनी नौकरी से हाथ धोना नहीं चाहते। नाम उजागर न करने की शर्त पर एक कर्मचारी ने कहा, वरिष्ठ अधिकारियों के स्पष्ट निर्देश हैं कि जो कहा जाएगा करना होगा। हमसे नौकरों की तरह काम करवाया जाता है। अधिकारी अपनी ज़रूरतों के हिसाब से हमारा इस्तेमाल करते हैं।

सब जानते हैं अफसर
पुणे रेल मंडल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि रेलवे में बड़े पैमाने पर कर्मचारियों का शोषण हो रहा है। खासकर निचले स्तर के कर्मचारियों को अफसरों के घरों में नौकर की तरह काम करवाया जाता है। कागजों पर कुछ दर्शाया जाता है और हकीकत कुछ और होती है। दिल्ली-मुंबई में बैठे वरिष्ठ अधिकारी भी इस दास प्रथा से वाकिफ हैं, लेकिन कुछ नहीं करते क्योंकि वे खुद भी किसी न किसी रूप में इसका हिस्सा हैं।

कैसे चलेगा घर?
ब्रिजेश घर में एकलौता कमाने वाला था, उसकी मौत के बाद परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है। ब्रिजेश के दो छोटे भाई हैं, बेटे की मौत के बाद से मां सदमे में है। वैसे तो नियमानुसार ब्रिजेश के भाई को नौकरी मिलनी चाहिए, लेकिन वो प्रशिक्षण अवधि में था, इसलिए रेलवे ने नौकरी देने से इंकार कर दिया है।