शिवराज को उन्हीं के गढ़ में घेरने का कांग्रेसी दांव

भोपाल : समाचार ऑनलाइन  मध्यप्रदेश में वापसी के लिए हर संभव प्रयास में जुटी कांग्रेस ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को उन्हीं के गढ़ में घेरने के लिए एक दांव खेला है. कांग्रेस ने बिल्कुल वैसी ही रणनीति तैयार की है, जैसी कि कुछ साल पहले भाजपा ने तैयार की थी. कांग्रेस इस बात को अच्छी तरह से समझती है कि प्रदेश में एकमात्र शिवराज ही भाजपा का चेहरा हैं. उनकी रैलियों में उमड़ रही भीड़ वोट के रूप में भाजपा की झोली में आ सकती है. इसलिए कांग्रेस की कोशिश शिवराज को जितना संभव हो सके उनके चुनाव क्षेत्र यानी बुधनी में व्यस्त रखना है. इसी के तहत राहुल गाँधी ने बुधनी से पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं पूर्व प्रदेश पार्टी अध्यक्ष अरुण यादव को मैदान में उतारा है. यदि कांग्रेस किसी कमजोर प्रत्याशी को शिवराज के खिलाफ खड़ा करती तो उन्हें बुधनी पर ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत नहीं पड़ती, लेकिन अब शिवराज को अपेक्षा से ज्यादा समय बुधनी के लिए निकालना होगा.

करीब 15 साल पहले भाजपा ने भी इसी तरह की रणनीति को अंजाम दिया था.  2003 में भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की घेराबंदी के लिए शिवराज सिंह चौहान को उनके खिलाफ चुनावी जंग में उतारा था. दरअसल, बुधनी विधानसभा से अंतिम दौर तक कांग्रेस उम्मीदवार को लेकर कयास लगाए जा रहे थे. पहले दिग्विजय सिंह की पत्नी अमृता राय का नाम सुर्खियों में था. दिग्विजय के भी बुधनी से चुनावी समर में उतरने की अटकलें लगाई जा रही थीं, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने सभी को चौंकाते हुए अरुण यादव के नाम पर मुहर लगा दी.

जानकार भी मानते हैं कि यादव शिवराज को कड़ी टक्कर दे सकते हैं, ऐसे में शिवराज को प्रचार के लिए ज्यादा से ज्यादा वक्त बुधनी को देना पड़ेगा और यही कांग्रेस की रणनीति भी है. मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह भले ही जनता की उम्मीदों पर खरे उतरे हैं, लेकिन मौजूदा वक़्त में कई ऐसे कारण हैं जिनके चलते लोगों में उनके प्रति गुस्सा बढ़ गया है. यदि यह गुस्सा मतदान में झलका, तो निश्चित तौर पर भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है. आलाकमान को भी इस बात का इल्म है, इसलिए शिवराज को बुधनी पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा जा सकता है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में 13 साल पूरे करने वाले शिवराज सिंह चौहान को अपने राजनीतिक करियर में दो बड़ी हार का सामना करना पड़ा है. पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में उन्हें विक्रम वर्मा के हाथों शिकस्त मिली थी और 2003 विधानसभा चुनाव में वह दिग्विजय सिंह को हराने में नाकाम रहे थे.

कितना दम है यादव में?

अरुण यादव मध्य प्रदेश कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार दिवंगत सुभाष यादव के बेटे हैं. उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनाव में खरगोन सीट से भाजपा के कद्दावर नेता कृष्णमुरारी मोघे को 1 लाख, 18 हजार वोटों से हराया था. 2009 के चुनाव में उन्होंने खरगोन के बजाए खंडवा से चुनाव लड़ा और चार बार के सांसद रहे नंदकुमारसिंह चौहान को शिकस्त दी. 2014 में कांग्रेस की करारी हार के बाद अरुण यादव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था, हालांकि वह बिखरी कांग्रेस को एक सूत्र में पिरोने में नाकाम रहे. जिसके चलते उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा. अब देखने वाली बात होगी कि क्या वह शिवराज सिंह को उन्हीं के गढ़ में पराजित कर सकते हैं?