कमजोरियों को मजबूतियों में बदलता गणेश भक्त

पुणे । समाचार ऑनलाइन

अनामिका
गणेशोत्सव का नाम लेते ही सभी में उत्साह आ जाता है। वैसे तो यह त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता है पर यह महारष्ट्र का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है। खासकर पुणे और मुंबई में तो इसकी बात ही अलग है। सावन महीना आते ही लोगों गणपति बाप्पा के आगमन में जुट जाते है। हर साल जोश और उत्साह से ढोल ताशे बजा कर बाप्पा का स्वागत किया जाता है। ढोल ताशे बजने वाले ग्रुप को दस्ता कहा है। ये सिर्फ महारष्ट्र या भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत प्रसिद्ध है। ये दस्ते घंटे के हिसाब से पैसे लेते है। इनका रेट इसकी लोकप्रियता पर निर्भर होता है। यह रेट प्रति घंटा 500 से ले कर 5000 भी हो सकता है। पुणे में कुल 147 रजिस्टर्ड पथक है।
ढोल ताशा का जन्म कहां से हुआ? इनमें किन वाद्यों का समावेश होता है? यह ढोल ताशे किस देश से लाये जाते है? यह किस संस्कृति से आया है? इसकी तह तक जाने पर पता चला कि, पर्शियन संस्कृति से साधारण 15वें शतक के आसपास ढोल भारत पंहुचा। भारत में तब मुगलों का राज था। ढोल को तब ‘डोहोल’ नाम से जाना जाता था। यह चर्मवाद्य विजयनाथ के लिए बजाय जाता था। महाराष्ट्र में सार्वजनिक उत्सव पर ढोल बजाया जाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने क़सबा गणपति को सबसे पहले ढोल के झंकार से मानवंदना दी थी।
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इस साल भी गणेश उत्सव में ऐसा ही जोश देखने को मिल रहा है। कुछ ऐसे गणेश भक्त भी है जो बाप्पा के आगमन के लिए इतने उत्साहित रहते है कि, उन्होंने अपनी कमजोरियों को मजबूतियों में बदल दिया है। ऐसा ही एक बाप्पा भक्त पिंपरी पुणे में देखने को मिला जिसका नाम गणेश भट है। गणेश पोलियो से पीड़ित है। उसके बावजूद वह हर साल गणेश वत्सव में ढोल बजाते है। गणेश भट 28 वर्ष के है और 12 साल की ही उम्र से उन्होंने ढोल बजाना शुरू कर दिया था। उन्होंने बताया कि, वह एक ड्राइवर है जो सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक गाड़ी चलाते है। उसके बाद समय निकालकर हर शाम 7:30 बजे से रात के 11 बजे तक 2 महीने लगातार ढोल की प्रैक्टिस करते है। गणेश भट एक टीचर भी है, वह पिछले 8 साल से बच्चों को ढोल-ताशा बजाना सीखा रहे है।
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गणेश ने बताया कि, एक बार उन्होंने मोरया पथक वालों को ढोल बजाते देखा, जो उन्हें बेहद पसंद आया। फिर गणेश ने मोरया पथक के साथ काम करने की इक्छुकता जताई। तब से ले कर आज तक गणेश मोरया पथक के साथ ढोल बजाते है। गणेश को उनके साथ ढोल बजाते हुए 8 साल हो गए है। जब उनसे पूछा गया कि, मोरया पथक वालों को उनके साथ काम करने की इक्छुकता पर कोई आपत्ति थी या नहीं। तो उन्होंने बतया कि, मोरया पथक वालों ने खुशी खुशी उनका स्वागत किया और एक परिवार की तरह रहते है। गणेश ने बताया कि, उन्होंने महाराष्ट्र के कई शहर जैसे कोल्हापुर, सोलापुर, करंजी, पुणे के लक्ष्मी रोड साथ ही अन्य राज्य जैसे आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी जा कर ढोल बजाया है