वेस्टर्न घाट रिपोर्ट पर अमल होता तो नहीं होती इतनी बड़ी विनाशलीला

पुणे। समाचार ऑनलाइन
केरल में मचे हाहाकार पर पर्यावरणविद् गाडगिल की राय
केरल पिछले 100 साल के इतिहास में बाढ़ की सबसे बड़ी विपदा से जंग लड़ रहा है। इस पर वरिष्ठ पर्यावरणविद् माधव गाडगिल ने कहा है कि, अगर लोग झूठे प्रचार का शिकार नहीं होते और वेस्टर्न घाट रिपोर्ट पर अमल किया जाता तो केरल को इतनी बड़ी विनाशलीला का सामना नहीं करना पड़ता। लोगों को अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए पर्यावरण के खिलाफ होने वाली गतिविधियों का विरोध करना होगा, जिससे राज्य पर्यावरण और जनहित के विकास के रास्ते की ओर बढ़े।
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एक अग्रणी अंग्रेजी अखबार के साथ साझा की गई जानकारी में गाडगिल ने यह भी कहा कि अगर 2011 में उनके द्वारा सौंपी गई वेस्टर्न घाट इकॉलजी एक्सपर्ट पैनल रिपोर्ट में उठाई गई चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया गया, तो महाराष्ट्र और गोवा को भी इसी तरह के कुदरत के कहर का सामना करना पड़ सकता है। केरल, महाराष्ट्र और गोवा में बारिश की तीव्रता भिन्न-भिन्न है। हांलाकि इन क्षेत्रों की पर्यावरणीय चिंताएं एक जैसी हैं, क्योंकि यहां बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य हो रहे हैं। महाराष्ट्र और गोवा में केरल जैसी मूसलाधार बारिश नहीं हुई है लेकिन यहां पुणे के मलिन में 2014 में हुई त्रासदी की तरह बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बरकरार है।
उन्होंने कहा, इसका विपरीत प्रभाव हो सकता है। यह केवल अचानक आई बाढ़ से संबंधित नहीं है। यह कोई बड़ी प्राकृतिक चिंता हो सकती है, जिसके बारे में रिपोर्ट में जिक्र है। यह अब राज्यों के ऊपर है कि वे रिपोर्ट में की गई सिफारिशों पर अमल करें। महाराष्ट्र के रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग जिलों में कई पर्यावरणीय चिंताओं को लेकर ग्रामसभा के स्थानीय स्तर पर चर्चा होनी चाहिए। केरल में इस मॉनसून के दौरान आई त्रासदी इंसान की देन है और इसके पीछे अवैध निर्माण और अत्यधिक खनन वजह है। जंगल के संसाधनों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग, नदियों और जमीन का क्षरण, लगातार अवैध खनन और निर्माण से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं।
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नदियों की धाराएं बदलने और उनके तल सिकुड़ने से बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है। गाडगिल द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में ऐसी आपदा के बारे में चेतावनी दी गई है। जमीन और जल संसाधनों को लेकर इस रिपोर्ट में जन उपयोगी रवैया अपनाने पर जोर दिया गया है। देश को शासन के लोकतांत्रिक हस्तांतरण और प्राकृतिक संसाधनों की जन उपयोगी प्लानिंग और प्रबंधन की राह दिखाने वाले केरल को यह रिपोर्ट लागू करनी चाहिए थी। गाडगिल ने लौह अयस्क की खुदाई करने वाली कंपनियों से मिले डेटा के आधार गोवा के पर्यावरण पर काफी अध्ययन किया है। 2011 में उन्होंने इन कंपनियों से मिली इन्वाइरनमेंट इंपैक्ट असेसमेंट (EIA) रिपोर्ट की पड़ताल की थी। इसमें माइनिंग के जलीय प्रभाव के बारे में तथ्यों को दबा दिया गया था।