करुणानिधि की मौत के 6 दिन बाद ही परिवार में शुरू हुआ विरासत का संग्राम

चेन्नई। समाचार ऑनलाइन
डीएमके चीफ एम. करुणानिधि के निधन को अभी छः दिन ही हुए थे कि उनके दोनों बेटों के बीच विरासत संभालने को लेकर संघर्ष शुरू हो गया है। सोमवार को करुणानिधि के समाधि स्थल जाकर उनके बड़े बेटे एम. के. अलागिरी ने दावा किया कि उनके पिता करुणानिधि के सच्चे समर्थक और सहयोगी उनके साथ है। उनका यह बयान डीएमके कार्यकारी समिति की मंगलवार को होने वाली बैठक से ठीक पहले आया है।
आपको बता दें कि अलागिरी को कुछ साल पहले पार्टी से निकाल दिया गया था और तब से वह पार्टी और राजनीति से दूर थे। एक साल पहले ही उनके छोटे भाई और करुणानिधि के दूसरे बेटे स्टालिन को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष भी बना दिया गया था।
अब पिता की मौत के छः दिन बाद ही अलागिरी ने पार्टी पर अपनी दावेदारी जता दी है। उन्होंने स्टालिन को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के फैसले पर भी सवाल उठाए हैं।
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अलागिरी को दोबारा पार्टी में शामिल करने की मांग 
पार्टी से निकाले गए अलागिरी को दोबारा पार्टी में शामिल किए जाने की मांग तेज हो गई है। उन्होंने खुद कहा है कि पार्टी में जो कुछ हुआ है उससे उन्हें दुख हुआ है। सोशल मीडिया पर समर्थन में कई विडियो शेयर किए जा रहे हैं और पोस्टर के जरिए करुणानिधि के बेटे दयानिधि अलागिरी को भविष्य के नेता के तौर पर प्रॉजेक्ट किया जा रहा है। ऐसे में डीएमके के प्रवक्ता भी अलागिरी के मामले में कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।
2014 में करुणानिधि ने पार्टी से निष्कासित किया था
 
बता दें कि डीएमके की राजनीतिक विरासत को लेकर दोनों भाइयों के बीच पुराना विवाद रहा है। करुणानिधि के बड़े बेटे अलागिरी को 2014 में बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और तमिलनाडु के एमडीएमके पार्टी के जनरल सेक्रेटरी वाइको से मिलना महंगा पड़ा था। उनकी पार्टी विरोधी गतिविधियों से नाराज करुणानिधि ने अलागिरी को पार्टी से बाहर निकाल दिया था। पार्टी में उनकी प्राथमिकता सदस्यता को भी खत्म कर दिया था। करुणानिधि ने साल 2016 में ही छोटे बेटे एमके स्टालिन को अपना सियासी वारिस घोषित कर दिया था।