अमेरिकी बच्चों में भारतीय शास्त्रीय संगीत की ललक जगा रहे महेश काले

पुणे | समाचार ऑनलाइन

गुरू पूर्णिमा के मौके पर प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायक महेश काले पुणे पत्रकार भवन में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल हुए। इस दौरान पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने अपनी जिंदगी से जुड़े पहलुओं और सफलता में गुरू की भूमिका पर प्रकाश डाला। काले ने बताया कि उन्हें कई सालों के बाद गुरू पूर्णिमा के अवसर पर भारत आने का मौका मिला है। आज सबसे पहले वह अपने गुरू के घर गए और उस कुर्सी को छूकर आशीर्वाद लिया, जिस पर बैठकर उनके गुरू उन्हें संगीत की बारीकियों से रू-ब-रू कराया करते थे।

महेश काले के मुताबिक, उन्हें बचपन से ही संगीत में रुचि थी, वह सुबह 4 बजे उठकर रियाज किया करते थे। लगातार अभ्यास और गुरूजी के निर्देशों पर अमल करते हुए उन्होंने शास्त्रीय संगीत गायन में आज अपनी एक अलग पहचान बना ली है। काले कहते हैं कि रियाज एक तरह से किसी भाषा का व्याकरण है। यदि व्याकरण ही सही नहीं होगी, तो भाषा सही होने का सवाल ही नहीं बनता। रियाज साधना की दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम होता है।

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महेश अमेरिका में बच्चों को भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देते हैं। इस वजह से  अधिकांश सही वह देश से बाहर रहते हैं। काले ने कहा कि भारत एक सांस्कृतिक देश है, जहाँ भाषा और सभ्यताओं में विभिन्नता है। हम यहां अपनी सांस्कृतिक समझ को आसानी से विकसित कर सकते हैं। काले इस बात से बेहद खुश हैं कि अमेरिका में भी बच्चे भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रति दीवानगी रखते हैं। उनके मुताबिक, बच्चे काफी मेहनती हैं और एक घंटे की शिक्षा के लिए तीन से चार घंटे की दूरी तय करके आते हैं।

सोशल मीडिया को गुरू न समझें

सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव पर काले ने कहा, थोड़ा बहुत सीखने या एक-दूसरे से संपर्क करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल ठीक है, लेकिन यदि हम इसे अपना गुरू समझने लगें, तो ये ठीक नहीं है। संस्कृति और परंपरा के बारे बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘हमारा देश युवाओं का देश है। लेकिन यह देखकर थोड़ा दुख होता है कि आजकल के युवाओं में अपनी सांस्कृतिक पहचान से ख़ास जुड़ाव नहीं है। हम महाराष्ट्र का ही उदाहरण ले सकते हैं। आज अगर कोई मराठी फिल्म लगती है, तो बमुश्किल 250 या 300 युवा उसे देखने के लिए थियेटर जाते हैं, जबकि शाहरुख, सलमान खान आदि को देखने के लिए थियेटर में भीड़ उमड़ पड़ती है’।