सोशल मीडिया पर फैली अफवाह के चलते सुलगा शिलॉन्ग?

शिलॉन्ग: मेघायल की राजधानी शिलॉन्ग में बीते गुरुवार को हिंसा भड़क गई थी। जिसके बाद हालात इतने ख़राब हो गए कि प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा और इंटरनेट सेवाओं को भी बंद कर दिया गया। इस हिंसा को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश भी की गई। दरअसल, थेम ल्यू मावलोंग इलाके में सरकारी बस में खलासी का काम करने वाले एक खासी लड़के और एक पंजाबी महिला के बीच कहासुनी हो गई थी। इस दौरान दो पक्षों के लोगों ने एक दूसरे के साथ कथित मारपीट की। मामला पुलिस के पहुंचा,जिसने बीचबचाव करते हुए दोनों समुदायों के लोगों को शांत कराया। लेकिन घटना के बाद सोशल मीडिया पर किसी ने खासी युवक के मरने की अफवाह उड़ा दी। इसके बाद कई स्थानीय संगठनों से जुड़े लोग पंजाबी कॉलोनी पहुंच गए और वहीं से दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़प शुरू हुई।

पंजाबी निशाने पर
जानकारी के अनुसार, इस इलाके के खासी लोग पंजाबी समुदाय को हटाने की लंबे दिनों से मांग कर रहे हैं। पंजाबी लेन के गुरुद्वारा कमेटी के महासचिव गुरजीत सिंह ने कहा कि हालिया हिंसा एक बड़े एजेंडे का हिस्सा है। 1980 से खासी हमें अवैध निवासी बता रहे हैं और हमें यहां से चले जाने को कह रहे हैं। कई नेता किसी और सुरक्षित जगह पर पुनर्वास कराने की बात करते हैं, लेकिन हुआ कुछ नहीं। कुछ लोगों का कहना है कि कई मौकों पर खासकर दिवाली और काली पूजा के वक्त, पंडालों पर पेट्रोल बम फेंके जाते हैं। गैर-जनजातीय लोगों और उनके बिजनेस को अक्सर निशाना बनाया जाता है।

पत्थरबाजों को फंडिंग
इस बीच मुख्यमंत्री कॉनराड के. संगमा ने कहा कि हिंसा स्थानीय मुद्दे को लेकर हुई थी और यह सांप्रदायिक हिंसा नहीं थी। उन्होंने आगे कहा कि समस्या एक खास इलाके में एक खास मुद्दे को लेकर हुई। दो समुदाय इसमें शामिल थे, लेकिन यह सांप्रदायिक हिंसा नहीं थी। उन्होंने कहा कि निहित स्वार्थ वाले संगठनों और राज्य से बाहर की मीडिया के एक हिस्से ने शिलॉन्ग में हुई झड़पों को सांप्रदायिक रंग दिया। मुख्यमंत्री के मुताबिक, पुलिस को ऐसी सूचना मिली है कि कुछ लोग पत्थरबाजों को फंड दे रहे हैं। हिंसा की फंडिंग कर रहे लोगों का पता लगाया जा रहा है।